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16. अग्रिशिखा के दर्शन से वह नाथ अत्यन्त घने कर्म रूपी ईंधन को विशेष रूप से जलायेगा 34
वर्ण
:
गोपाचल नगर का वर्णन करते हुए कहा गया है कि वहाँ उत्तम चतुर्वर्ण के लोग पुण्य से प्रकाशित दिव्य भोगों को भोगते हुए विचरण करते रहते हैं 35 चतुर्वर्ण से तात्पर्य यहाँ ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण से है।
विभिन्न जातियाँ एवं वर्ग :
'पासणाहचरिङ ' में विभिन्न जातियों या वर्गों के नाम आए हैं। ये जातियाँ एवं वर्ग निम्नलिखित हैं :
1. वणिक् 36 - गोपाचल वर्णन के प्रसङ्ग में कहा गया है कि वहाँ वणिक् श्रेष्ठ पदार्थों का व्यापार करते हैं।
ब्राह्मण :
एकत्वानुप्रेक्ष्य के प्रसङ्ग में कहा गया है कि जीव अकेला ही ब्राह्मण, शूद्र अथवा वणिक् बनता है | 37 पद्मचरित में ब्रह्मचर्य को धारण करने वाले को ब्राह्मण कहा है 38
39
शूद्र :
जो नीच कार्य करते थे तथा शास्त्र से दूर भागते थे, उन्हें शूद्र संज्ञा प्राप्त हुई । शूद्रों के प्रेष्य आदि अनेक भेद थे 40
चरड 41 - लुटेरे ।
कुसुमाल 42 - चोर |
34 नही 214
35 पासणाहचरिठ 1/3 36 वही 1/3
37 वही 3/17
38 ब्राह्मणों ब्रह्मचर्यंत, पद्मचरित 6 / 209
39 पास 3:17
40 शूद्रसुंपती भेद्रो आषिभिरिस्तव यशचरित 3/258
41 पास, 1/3 42 वही 1/3
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