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________________ म्लेच्छ (मिच्छ): गोपाचल नरेश डूंगर सिंह के विषय में कहा गया है कि वह म्लेच्छ वंश को दहा देने वाला था।43 भारतक्षेत्र की स्थिति के सन्दर्भ में कहा गया है कि सरोवरों एव गुफागों को पूर्ण करने वाली गदामाद लिन्च परियों द्वारा भरत क्षेत्र के छह खण्ड किए गए हैं। उनमें से दक्षिण भरत के तीन खण्डों में से मध्य का खण्ड आर्यखण्ड है और शेष पाँच खण्डों में भयानक म्लेच्छों का निवास है। जिन भगवान का धर्म वहाँ नहीं जाना जाता है।+4 नट: नट तरह तरह का वेष धारण कर45 विचित्र प्रकार की चेष्टायें करते थे।6 'पद्मचरित' में कहा गया है कि संसारी प्राणियों की अनेक जन्म धारण करने के कारण नट के समान विचित्र चेष्टायें होती हैं।17 'पासणाहचरिउ' में कहा गया है कि समवसण में नर पटु-पटह के शब्द के अनुसार आश्चर्यकारक नृत्य कर रहे थे। वहाँ एक नटशाला भी थी48 पण्डित49 : जिसकी सदसद्विवेकिनी बुद्धि हो वह पण्डित है। संधपति (संघवी):50 ___ प्रचीनकाल में व्यापार अथवा तीर्थ यात्रादि के लिए संघ बनाकर जाया करते थे। इन संघों का एक मुखिया होता था, जिसे संघपति कहते थे। उसी संघपति का अपभ्रंश रूप संघवी, संग, सिंघई तथा सिंधी आज भी मिलता है। गोपालक : गायों की रक्षा करने वाले। 43 पास. 1/4 44 वही 5/27 45 पद्मचरित 12/310 46 वही 85/92 47 वही 85/92 48 पास. 4/15 49 बही 115 50 वही 1/7 51 वहीं 1/9 PASTAsxesereesmastastess 149 dastushasrusiasmesses
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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