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________________ Sxxxxxxex नहीं होना चाहिए। धरणेन्द्र के विषय में कहा गया है कि उसके मुख में लपलपाती हुई जिल्ह्वा समूह कुशिष्य के मन के समान अत्यन्त चञ्चल हो रही 2f128 विद्याध्ययन हेतु विशाल सङ्घ शालायें29 हुआ करती थीं, जहाँ भव्यजन गोष्ठियाँ करते थे। वाणी में मागधी वाणी की प्रशंसा की गयी है। जिनेन्द्र भगवान की मागधी वाणी सर्वत्र जीवों में प्रेम उत्पन्न करने वाली एवं आशा को पूर्ण करने वाली होती थी 30 शकुन : ऐसी आकस्मिक घटना को, जिसे भावी शुभाशुभ का द्योतक समझा जाता हैं, शकुन कहते हैं अथवा भावी शुभ या अशुभ फल की द्योतक किसी घटना, अद्भुत दृश्य या संयोग को शकुन कहते हैं । सूचक संकेत एवं भावी घटना में कार्य कारण नहीं होता । शकुन वस्तुतः ऐसा संकेत है जो कारणान्तर से उत्पन्न होने वाले कार्य की सूचना मात्र देता है, स्वयं उस भावी घटना का कारण नहीं होता है। 31 वराहमिहिर के अनुसार शकुन जन्मान्तर में कृत कर्म के भावी फल की सूचना देता है | 32 'पासणाहचरिउ' में वामा देवी के 16 स्वप्न तथा उनके फलों का वर्णन है। ये स्वप्न उसने पश्चिम रात्रि में देखे थे। सर्वप्रथम उसने सुगन्धित कर्णो से युक्त, चन्द्रकिरण के समान स्वच्छ चार धवल दाँतों वाले एवं प्रचण्ड गर्जन करने वाले गजेन्द्र को देखा, फिर ढिक्कार छोड़ते हुए, विशाल कन्धों वाले तथा सैकड़ों प्रकार के सुख देने वाले वृषभ को देखा। (पुनः) अपने नाखून वाले पंजों को ऊपर उठाए हुए, घुमंची के समान अरुण नेत्र वाले एवं मृगों के प्राणों का हरण करने वाले एक मृगेन्द्र को देखा। (तत्पश्चात् ) जगवल्लभा लक्ष्मी को अपने समीप देखा तथा भ्रमरों से शुक्त श्रेष्ठ पुष्पमाला को देखा । तदनन्तर अमृत को धारण करने वाला परिपूर्ण कलाकर, तिमिर के भार 28 पासणाहचरित 4:11 29 नही 4/15 30 वही 4/16 31 डॉ. रमेशचन्द जैन : पद्मचरित में प्रतिपादित भारतीय संस्कृति अस्य जन्मान्तर कृतं कर्म पुंसां शुभाशुभम्। 32 यत् तस्य शकुन पार्क निवेदयति गच्छताम् ॥ वराहमिहिर : वृहत्संहिता, पृ. 500 अध्याय 86/5 Sesxexesxess. 1462035c
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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