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________________ कहने लगे कि - "हाय पुत्र, तेरे बिना मेरे सुखद मनोरथ कौन पूरे करेगा हाय, मेरे हाथों का रत्न कहाँ गिर गया? हाय, उस गुणगरिष्ठ को मैंने क्यों युद्ध में भेजा? हाय वज्रपाणि, तुमने बड़ा अयुक्त किया। हे अर्ककीर्ति, तुम मेरे पुत्र को वन में क्यों ले गये थे?" इस प्रकार जब राजा अश्वसेन अति शोक से मोहित हो गया, तब निर्मलमति मन्त्री ने कहा - "हे देव, पुत्र का शोक छोड़ो क्योंकि वह दुःखों का कारण व रोगोत्पादक है। संयोग का नियम से वियोग होता है, ऐसा जानिए। इस प्रकार समझकर विद्वजन शोक छोड़ देते हैं और फिर आपका पुत्र तो त्रिलोक जयी तेईसवाँ तीर्थकर है, जिसने पवित्र रत्नत्रय को जान लिया, वह विषयों में आसक्त होकर कैसे रह सकता है?''90 "जो तीनों लोकों का पितामह है तथा जो सुरखेचरों के लिए अत्यन्त पूज्य है, वह विषय भोगों में आसक्ति क्यों कर सकेगा? जिसने रामपूर्वक मुक्तिवधू का वरण किया है, उसके लिये शोक नहीं करना चाहिए, प्रत्युत उसके गुणों का स्मरण करना चाहिए।''91 उपर्युक्त संवाद से निम्न तथ्य सामने आते हैं : (क) पुत्र का वियोग असह्य होता है। (ख) संसार की असारता का जिसे ज्ञान हो जाता है वह वैराग्य धारण करना अपना कर्तव्य समझता है। (ग) मोक्षमार्ग पर चलने वालों के लिए शोक नहीं बल्कि उनके गुणों का स्मरण करना चाहिए। आनन्द और मुनि का संवाद : __यह संवाद राजकुमार आनन्द और एक मुनिराज के बीच हुआ है। संवाद जहाँ दार्शनिक विषय से सम्बन्ध रखता है वहीं रस वृद्धि में सहायक होने के साथ-साथ आगम मान्यता की भी पुष्टि करता है। राजकुमार आनन्द ने मुनिराज से पूछा - __ "पाषाण प्रतिमा के अर्चन एवं न्हवन से क्या पुण्य होता है?" 90 पास 4/6 91 वहीं, घत्ता 56
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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