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के गंगा तटवर्ती जंगलों में हाथियों का बाहुल्य होने के कारण यह गजपुर कहलाने लगा। पश्चात् कुरु वंश में हस्तिन् नाम का एक प्रतापी राजा हुआ। उसके नाम पर इसका नाम हस्तिनापुर हो गया। प्राचीन साहित्य में इसी हस्तिनापुर के अनेक नाम आते हैं, यथा - गजपुर14, गजसाह्वयपुर15, नागपुर18, आसन्दीवन, ब्रह्मस्थल17, कुंजरपुरराछ, हस्तिनापुर आदि।
प्रथम तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव ने सर्वप्रथम यहीं पर ही राजा सोमप्रभ और श्रेयांश के हाथों से इक्षुरस का आहार ग्रहण किया था।19
हस्तिनापुर सोलहवें, सत्रहवें एवं अट्ठारहवें तीर्थकर शान्ति, कुन्थु और अरहनाथ के गर्भ, जन्म, तप और केवलज्ञान कल्याणक की भूमि रही है।20 यहाँ गंगा नामक पवित्र नदी पवाहित होती है। भ, मलिनाश स्वामी का समवसरण हस्तिनापुर आया था। इस नगर में श्री विष्णु कुमार मुनि ने बलि द्वारा हवन के लिए एकत्र सात सौ मुनियों की रक्षा की थी। सनत कुमार, महापद्म, सुभीम और परशुराम का जन्म इसी नगर में हुआ था। इस महानगर में शान्ति, कुन्थु, अरह और मल्लिनाथ के मनोहर चैत्यालय थे।21 रक्षाबन्धन, अक्षय तृतीया जैसे मंगल पर्वो का जन्मदाता यह हस्तिनापुर अपनी पवित्रता के कारण आज भी पूजनीय हैं। काशी :
महाकवि रइधू ने "पासणाह चरिंउ" में काशी नगर का संक्षेप में वर्णन किया है। भ, पार्श्वनाथ को जन्मस्थली होने के कारण काशी का काव्य में महत्त्व होना निर्विवाद है। कवि ने काशी को स्वर्ग से भी श्रेष्ठ मानते हुए कहा है कि :
13 द्रष्टव्य भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (प्रथम भाग) पृ 22 14 पउमचरिङ : विमलसरि, 95734 15 श्रीमद्भागवत् 1/1:48 16 पठमचरित 6/71, 29/10 17 वही 20/180 18 वही 95/34 19 पाचरित 4/7-22 20 डॉ. रमेश चन्द जैन पावनतीर्थ हस्तिनापुर, पृ. 12 21 डॉ. रमेश चन्द्र जैन : पावनतीर्थ हस्तिनापुर पृ. 13-14 22 वर्तमान भारतवर्ष के उत्तरप्रदेशान्तर्गत वाराणसी जनपद