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________________ सोने के कड़ों से विशेष रूप से मण्डित, सभी प्रकार के श्रृंगारों से युक्त, सौभाग्य की निधान, जैन धर्म एवं शील गुण से युक्त मानपूर्वक श्रेष्ठ लीलायें किया करती थीं धन-धान्य से युक्त होने के कारण वहाँ लुटेरे, कपटी, चोर, दुष्ट, दुर्जन, क्षुद्र, दुष्ट, पिशु, ढीठ, दुःखी एवं अनाथ जन दिखाई भी नहीं देते थे। कवि ने गोपाचल को श्रेष्ठ नगरों का गुरु मानते हुए कहा है कि : सुहलच्छिजसायरु णं रयणायर बुहुयण जुउ णं इंदठरु ।। सन्थस्थहिं सोहिउ जणमणु मोहिउ ण वरणयरहपहु गुरु ।। अर्थात् गोपाचल नगर सुख, समृद्धि एवं यश के लिये रत्नाकर के समान आकर था, बुधजनों के समूहों से युक्त वह नगर मानो इन्द्रपुरी ही था। शास्त्रार्थों से सुशोभित तथा जनमन को आकर्षित करने वाले सर्वश्रेष्ठ नगरों का मानो वह गुरु ही था। नगर श्रेष्ठ गोपाचल की चरण रज के स्पर्श से पवित्र मानने वाली सुवर्ण रेखा नदी के चमत्कार को कवि ने बड़ी ही सरस शैली में चित्रित किया है : सोवण्णरेह णं उवहिं जाय। णं तोमरणिव पुण्णेणआय ।। ताइ वि सोहिउ गोपायलक्खु । णं भज्जसमाण उणाहु दक्खु वहाँ (गोपाचल) के बाजार नगर के मध्य में स्थित थे। बाजारों में सोनाचाँदी, हीरा-मोती, वस्त्र, बर्तन, खाद्य पदार्थ आदि सभी मिला करते थे। वहाँ के धरातल पान के रंग में रंगे हए रहते थे।10 कवि के इस कथन से उस समय बहुतायत से पान खाने के शौक का पता चलता है। हस्तिनापुर : "पासणाह चरिठ" में भ. पार्श्वनाथ को वणिक श्रेष्ठ वरदत्त के द्वारस हस्तिनापुर में आहारदान दिए जाने का उल्लेख आया है। 2 आद्य तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव ने 52 आर्य देशों की स्थापना की थी, उनमें कुरुजाङ्गल देश भी था। इस प्रदेश की राजधानी का नाम गजपुर था। सम्भवत: इस प्रदेश 6 वहीं 1/4 7 वही 1/4 8 वही 113 १ वही 1/3 10 "तंबोल-रंग रंगिय-धरग्ग", राधू पासणाह. 1/3 11 वहीं 4/३ 12 वही 43 stessesexesxesises 124MSRUSuselessesress
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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