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________________ अलंकृत करती है। इसमें सूर्य, रात्रि, दिन, पर्वत, वन, संयोग-वियोग, मुनि, स्वर्ग, नरक, नदी, सरोवर. सुद्ध, यज्ञ, मन्त्र, पुत्र, यात्रा, ऋतु और अभ्युदय आदि के सुन्दर चित्रण में भी कवि की लेखनी सराबोर रही है। प्रकृति वर्णन भी कवि के प्रकृति प्रेम को दर्शाता है। ग्रन्थ का नाम "पासणाहचरिउ चरित्र नायक श्री पाश्वनाथ के नाम पर रखा गया है, जिससे वर्णित कथ्य का संकेत मिल जाता है। सूक्त पाक्या का समावेश ी काव्य की अपनी विशेषता है। 'काव्य के अन्त में मङ्गल कामना किए जाने से यह मंगलांकित अन्त वाला महाकाव्य है। उपर्युक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि "पासणाहचरिउ" गें न्यूनाधिक महाकाव्य के लक्षण भली-भाँति घटित होते हैं। अतएव इन स्त्र आधारों पर उसकी गणना महाकाव्यों के अन्तर्गत की जाती है। नगर-वर्णन गोपाचलः : महाकवि रइधू ने "पासणाहचरिउ" में गोपाचल नगर का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है। वर्तमान में मध्य प्रदेशान्तर्गत ग्वालियर जिला ही उस समय का गोपाचल था। कवि ने गोपाचल नगर को पृथ्वीमण्डल में प्रधान, समेरुपर्वत के समान विशाल, देवताओं के मन में भी आश्चर्य उत्पन्न करने वाला, भवन शिखरों से मण्डित तथा पृथ्वीमण्डल के श्रेष्ठ पण्डित के समान माना है। गोषाचल नगर उस समय अत्यन्त वैभव से युक्त था। वहाँ के कलापूर्ण भवन, मन्दिर, जनावृत सड़कें, सोने-चाँदी, हीरे, जवाहत और मोतियों से भरे हुए बाजार और दानशालायें सभी आगन्तुकों को मोहित करती थीं। सभी मनुष्य धर्म एवं साहित्य की सेवा में रत रहते थे। वहाँ पर निरन्तर अर्चना, पूजा एवं दान से सुशोभित निर्मल बुद्धि से युक्त श्रेष्ठ मनुष्य निवास करते थे।4 जो सप्त व्यसनों तथा भय से रहित थे। वहाँ की स्त्रियाँ 2 भारतवर्ष के मध्यप्रदेशान्तर्गत ग्वालियर जनपद 3 पासणाहचरिट : इधू 14 4 रइधू, पासणाहचरित 1/4 5 वहीं 1/4
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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