SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नगर का वर्णन कर गोपाचल नरेश तोमरवंशी राजा दूंगरसिंह एवं उनकी वंश परम्परा का परिचय दिया है। अनन्तर कवि रइधू के आश्रयदाता साहू खेम सिंह अग्रवाल का परिचय है। खेऊ साहू द्वारा ग्रन्थ के भार को धारण कर लेने की प्रतिज्ञा के अनन्तर काव्य को प्रारम्भ किया गया है। काव्य का प्रारम्भ तीर्थकर पार्श्वनाथ की स्तुति करते हुए कथानक का भी निर्देश (आहासमितहु चरिउ) कर दिया है, अत: वस्तु निर्देशात्मक मंगलाचरण भी ___ ग्रन्थ की प्रामाणिकता हेतु रइधू कहते हैं कि जिस प्रकार गणधर ने मन के सन्देह रूपी शल्य को दूर करने वाला यह चरित श्रेणिक को सुनाया था, उसी प्रकार में भी अपनी शक्ति के अनुसार पापनाशक इस ( पार्श्व चरित) को कहता हूँ। "पासणाहचरिउ' के नायक देवाधिदेव भगवान श्री पार्श्वनाथ हैं। ये प्रख्यात वंश के क्षत्रिय राजकुमार हैं। इसमें धीरोदात्त नायक के त्याग, सहिष्णुता, उदारता, सहानुभूति, बन्धुत्व, करुणा इत्यादि सभी 7'. 'वद्यमान ग्रन्थ का प्रख रस गान्त है परन्तु श्रृंगार (संयोग और लोग), वीर, करुण, भयानक. रौद्र इत्यादि अन्य रसों की व्यञ्जना अप्रधान ..प में हुई है। भ. पार्श्वनाथ के 'लोकप्रिय जीवन को आधार बनाकर इस काव्य (पासणाहचरि.) का सृजन किया गया है। इसमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रूप पुरुषार्थ चतुष्टय का वर्णन किया गया है, किन्तु अन्तिम ध्येय मोक्ष पुरुषार्थ निरूपित है। महाकाव्य का प्रारम्भ मङ्गलात्मक है। यह मङ्गल नमस्कारात्मक है। "पासणाहचरिउ" कहने का प्रारम्भ में ही कथन किया गया है। इसमें कमठ जैसे खल की निन्दा और पार्श्वनाथ जैसे सज्जन की प्रशंसा भी की गयी है। ग्रन्थ में सात सन्धियाँ हैं। सन्धियाँ न अधिक छोटी हैं और न अधिक बड़ी समस्त काव्य में अडिल्ल, द्विपदी मौत्तिय दाम, रइडा, चन्द्रानन, धत्ता, भुजङ्गप्रयात, संसग्गि, सर्गिणी आदि विविध छन्दों का समुचित प्रयोग किया गया है। इस काव्य में अलंकारों का बड़ा ही सुन्दर प्रयोग हुआ है। अनुप्रास का प्रयोग पदे-पदे किया गया है, साथ ही यमक, उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, स्वभावोक्ति , अतिशयोक्ति आदि समाविष्ट अलंकारों की छटा भी काव्य को
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy