SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ SXS 'काम किसी-किसी महाकाव्य में एक राजवंश में उत्पन्न अनेक कुलीन राजाओं की भी चरित्र चर्चा दिखाई देती है। ( रसाभिव्यंजन की दृष्टि से ) श्रृंगार, वीर और शान्त रसों में से कोई एक रस प्रधान होता है। इन तीनों रसों में से जो रस भी प्रधान रखा जाय, उसकी अपेक्षा अन्य सभी रस अप्रधान रूप से अभिव्यक्त किए जा सकते हैं। ( संस्थान रचना की दृष्टि से) नाटक की सभी सन्धियाँ महाकाव्य में आवश्यक मानी गई हैं। ( इतिवृत्त योजना की दृष्टि से ) कोई भी ऐतिहासिक अथवा किसी महापुरुष के जीवन से सम्बद्ध कोई लोकप्रियवृत्त यहाँ वर्णित होता है। (उपयोगिता की दृष्टि से ) महाकाव्य में धर्म, अर्थ, और मोक्षरूप पुरुषार्थ चतुष्टय का काव्यात्मक निरूपण होता है, किन्तु उत्कृष्ट फल के रूप में किसी एक का ही सर्वतोभद्र निबन्ध युक्तियुक्त माना जाता है। महाकाव्य का आरम्भ मङ्गलात्मक होता है। यह मङ्गल नमस्कारात्मक, आशीर्वादात्मक या वस्तुनिर्देशात्मक होता है। किसी-किसी महाकाव्य में खलनिन्दा और सज्जनप्रशंसा भी उपनिबद्ध होती है। इसमें न बहुत छोटे और न बहुत बड़े आठ से अधिक सर्ग होते हैं। प्रत्येक सर्ग में एक छन्द होता है, किन्तु सर्ग का अन्तिम पद्य भिन्न छन्द का होता है। कहीं कहीं सर्ग में अनेक छन्द भी मिलते हैं। सर्व के अन्त में अगली कथा को सूचना होनी चाहिए। इसमें सन्ध्या, सूर्य, रात्रि, प्रदोष, अन्धकार दिन प्रात:काल मध्याह्न, मृगया, पर्वत, ऋतु, वन, समुद्र, संयोग, वियोग, मुनि, स्वर्ग, नगर, यज्ञ, संग्राम, विवाह, यात्रा, मन्त्र, पुत्र और अभ्युदय आदि का यथासम्भव साङ्गोपाङ्ग वर्णन होना चाहिए। इसका नाम कवि के नाम से या चरित्र के नाम से अथवा चरित्रनायक के नाम से होना चाहिए। सर्ग का नाम वर्णनीय कथा के आधार पर लिखा जाता है। संधि के अङ्ग यहाँ यथासम्भव रखने चाहिए। जलक्रीड़ा, मधुपानादि साङ्गोपाङ्ग होना चाहिए। P महाकाव्य के उपर्युक्त लक्षण न्यूनाधिक रूप में पासणाहचरिउ में घटित होते हैं। इसे सन्धियों में विभक्त किया गया है। सन्धि को ही सर्व का पर्याय मानना चाहिए। सन्धियों का विभाजन कडवकों में किया गया है तथा कडवक का कलेवर पंक्तियों से बना है। प्रत्येक सन्धि का नाम वर्णनीय विषय के आधार पर रखा गया है। काव्य के प्रारम्भ में कवि ने चौबीस तीर्थंकरों, सरस्वती एवं गौतम गणधर की स्तुति कर भट्टारक सहस्रकीर्ति, यश: कीर्ति एवं श्री खेमचन्द साहू का स्मरण किया है। इसके बाद कवि ने गोपाचल 121 Sxsxsxes
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy