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________________ तहाहं पि गंतूण पेच्छेमि जुद्धं विभंजेमि सत्तु जसासाहि लुझे। पभणेवि सो राउ पुत्तस्स उत्तंइतिणा तं पयंपेइ भिग्ण गत्नं । रवेकिनिमामस्स:अक्खंडरनं करेऊण आवेहु भो पुत्त सज्जं । जिणेऊण कालज्जओ माणसत्तो भुयंगप्पयावो ठवेवीह मत्तो । (पासणाहचरिउ 3/5) सुमौक्तिकदाम : जहाँ चार पयोधर (जगण) प्रसिद्ध हों, (प्रत्येक चरण में) तीन और तेरह (अर्थात 3 + 13 = 16) मात्रा हों वह काम) या सुमकिनद. है। यहाँ आदि में या अन्त में हार (गुरु) नहीं दिया जाता। यहाँ (सोलह चरणों में) दो सौ अधिक छप्पन (200 + 56 = 256) मात्रा होती हैं 67 जैसे णिरंतर दिति जहाच्छ्यभोय, जि दुलह चुच्चहि एत्थ जि लोइ। गया छाइयास जि एण विहीए, पुणोणहिँ वासरि जाय दिहीए । पासणाहचरिउ 212 पासणाहचरिठ में रइडा68 नामक पद्धडी छंद, सर्गिणी,59 संसग्गि70 और चन्द्राननः छन्दों का प्रयोग भी हुआ है। अति प्राकृत तत्व की भूमिका : . रइधु के पासणाहचरिउ' में अतिप्राकृत तत्व का सुन्दर सन्निवेश हुआ है। तीर्थकर के गर्भ में आने के कारण इन्द्र का आसन कम्पायमान हुआ। उसने अपने ज्ञान बल से वामा के गर्भ में तीर्थंकर को आया जानकर देवाङ्गनाओं को भेजा। इन्द्र की आज्ञा से कुबेर ने मन को आकृष्ट करने वाली वाराणसी नगर की शोभा की। फिर उसने श्रेष्ठ स्वर्ग और धन की वर्षा की। इन्द्र के विशेष आदेश से श्री, ह्री, धृति, कीर्ति आदि प्रमुख देवियाँ यहाँ आगीं, जहाँ जिनवर की जननी 67 पओहर चारि पसिह ताम, सि तेरह मत्तह मोसिअदाम! ण पुचहि हार म दिजइ अंत, बिह सअ अग्गल छामण मत्ता। प्राकृत पेंगलम् 2/133 68 पासणाहचरिउ 2:3 69 वहीं 4.7 70 वही 5/10 71 वहीं 3/8
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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