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________________ -पास.2/11 सिरिपासणाहु होहीइ वाहुतहिँ जाहि सिग्घ सोहामहंग्य करि अप्पसत्ति जिणणाहभत्तिा अरु मणिणिहाउ वरसहि सराउ तहु सुणिवि वाय पणवेवि पाय। सहि घणउ आउ पडियसहाउ किय णयरसोह जण-मण-णिरोह। पुणु वरसुवण्णु वरसेइ धण्णु सुहि सयण विंद पूरिय अणिंद। णउ दव्वहींय तहँ के वि हीण गउ रोय-दुक्खु णठ पुणु दुभिक्छ। धगकंचणड्ढ सव्व जि वियड्ढ । इह अट्ठमत्त दुवई पउत्त । भुजंगप्रयात : ___ जहाँ ध्वज (आदि लघु विकल, 15) तथा चामर, (गुरु), इस प्रकार चार गण, प्रत्येक चरण में स्थापित किए जाय (अर्थात् जहाँ चार यगण 155 हों), पिंगल ने इसे समस्त छन्दों का सार कहा है तथा यह वैसे ही गले में स्थापित किया जाता है, जैसे- हार इस शुद्ध देह वाले छंद को भुजंगप्रयात कहा जाता है। इसके प्रत्येक चरण में 20 मात्रा होती हैं.66 भुजंगप्रयात 155 155 155 155-12 वर्ण, 20 मात्रा (भुजंगप्रयात छंद में) चार अहिगण (यगण) प्रसिद्ध हैं, (इस छन्द के) सोलह चरणों में ( अर्थात् चार छन्दों में मिलाकर) सब कुल बीस अधिक तीन सौ (तीन सौ बीस) मात्रायें होती हैं। ऐसा पिंगल कहते हैं। जैसे - तया पुस जुत्तं पउत्तं पवित्तं पणासंति विग्घ्र तुमं णाम मित्तं । परं कारणं अज्ज बालत्तभावो सईणाह चित्तस्स मंदिण्ण रावो । ण दिट्ठो सि संगाम रंगो भयंगो कयंतुन्च पाक्यारु दूसियंगो । ण पेसेमि ते कारणेणं तुम भो पमाणेहि इत्थच्छड भोगलंभो । सुणेऊण रायस्स वाया जिणेदो पयंपेइ संसारवल्लीगंइदो । अहो ताय बालाणलो किं ण रण्णं डहेऊण संकीरए भप्फवणं | मइंदस्स डिभो गइंदाहँ बिदं ण किं भंजए रणि पत्तं मइंधं । 66 घओ धामरो रुअओ सेस सारो. हाए कंठए मुद्धए जत्थ हारो। चउच्छंद किज्जे तहा सुखदेहं, भुजंगाप पर बीस रहे। प्राकृत पैंगलम् 2/124 अहिंगण चारं प्रसिद्धा सोलह चरणेण पिंगलो भणइ। तीणि सयावा बीसग्गल मत्तासंखय समग्गाड़।। वहीं 2:125 Fastestastesesystesxesxesi 115 Xsesxesastushasresiress
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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