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________________ अश्वसेन राजा ऐसा था मानो जयलक्ष्मी ने नवीन वर ही धारण कर लिया हो।15 मानो पृथ्वी पर धर्म ही अवतीर्ण हो गया हो।16 वामादेवी के मुखमण्डल को लोग इस प्रकार देखते थे, मानो भूली हुई (किसी) मणि को खोज रहे हों।17 कोई-कोई शची क्षीरसागर से जल लाकर वामादेवी का स्नान कराती थी, मानो वर्षाकाल दुग्ध की वर्षा कर रहा हो।18 __जब गर्भ नौ मास का पूर्ण हो गया, तब उस (वामादेवी) का मुख इस प्रकार पीतवर्ण का हो गया, मानो उस गर्भ के यश का प्रकाश ही हो। (पाच) जिनेन्द्र का जन्म हुआ मानो संसार में चिन्तामणि ( नामक रन ) ही उत्पन्न हुआ हो अथवा यश का पुञ्ज ही प्रकट होकर स्थित हुआ हो या मानो पूर्व दिशा में सूर्य ही उदित हुआ हो अथवा चाँदनी रात्रि में चन्द्रमा उदित हुआ हो अथवा मानो कुरु भूमि में कल्पवृक्ष का अङ्कुर ही उत्पन्न हुआ हो। उसी प्रकार इस शुभमति वामा के गर्भ से जिन भगवान उत्पन्न हुए।19 जिननाथ के उत्पन्न होने पर समस्त लोक भक्ति भाव से आनन्दित हो उठा मानो तिमिर नाशक सूर्य के दर्शन से कमलाकर ही खिल उठा हो।20 यहाँ उत्प्रेक्षाओं की झड़ी दृष्टव्य हैं क्षीरोदधि से भरे हुए घट ऐसे प्रतीत होते थे मानो आकाश में चन्द्र और सूर्य ही परिभ्रमण कर रहे हों। 15 णं जयलच्छिए णवत्र धरियउ॥ 1:10 16 णं महिवीढि धम्मु अवयरिंउ॥ 1/10 17 जणु जोबइ पुणु पुणु मणि भुला।। 1/10 18 सु खीरसमुदहि केइ वि जाहि। ण्हवावहिं आणिवि तोउ विसुद्धा घणागमु वरिसइ णाई सुदुद्ध । 2/2 णवपासि हूव पुण्णु गबिभ तासु। मुहु पंडुरु णं तहु जसपयासु || 215 19 चिंतामणि णं उप्पण्णु लोइ। णं जसह पुंजु थिउ पयडु होइ। णं सहसकिरणु सुरवरदिसाई णं ससहरु पुणु चंदिणि णिसाइँ । __ णं सुरतरअंकुरु कुरुमहीए। तिम जिणवर जायठ सुहमहोए।। 2/5 20 जिणणाहहु जाएं पडियराएँ सयलु लोउ आणदिउ। दिवसेसहु दसणि तिमिविहंसणिणे कमलायर गदियउ॥ 216 21 खीरोहिं पयपूरेण पूर। पंपरिभमंति णहि चंद सूर।। 2/12
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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