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________________ * सप्तम सगं . [ २५ साम्यतादिगुणाः कीतिकान्तिशान्त्यादयोऽखिलाः। दृश्यन्ते जिनबिम्बे च तथा श्रीजिनपुङ्गवे ॥६१ ।। स्थिर वज्रासनं यन्नासाग्रदृष्टिरेव च । मुक्तिसाधन मर्चानां तथा धर्मविधायिनाम् ।।६।। इत्येवं तीर्थकत प्रति मालक्षरणदर्शनात् ।निश्चयः परमो भूयाग्जिने तद्भक्तिवारिणाम् ।।६३।। अतस्तत्परिणामेन तद्धधानम्मरणादिभिः ।तन्निश्नपेन जायेत महापुर्ण्य सुमिणाम् ।।६।। पुण्यपाकेन लोकेऽस्मिन् विश्वाभीष्टार्थसिद्धयः । संपद्यन्ते सुपुण्यानां चात्राभुन जगत्त्रये ॥६५॥ अतस्तीर्थशबिम्बादी भक्त्या करणात्मताम् । मनोऽभीष्ट फलं सर्व जायते दिवि भूतले ॥६६।। संकल्पितान्महाभोगान् दध : कल्पद्रुपा यथा । दशघा दानिमा तहज्जिनविम्बाश्च पूजिताः ।।६।। मनसा चिन्तित दत्त पथा चिन्तामरिणः सताम् । प्रचेतना जिनार्चा च तथा तद्भक्तिकारिगाम् ॥६॥ विध रोगादिकान् घ्नन्ति मारण मन्त्रोषधादयः । अचेतनास्तथा पापं त्याद्यास्तद्विधायिनाम् ।।६।। दोष और क्रूरता प्रादि अवगुरषों का समूह जिस प्रकार पृथिवी तल पर जिनप्रतिभाओं में नहीं हैं उसी प्रकार धर्म तीर्थ की प्रवृत्ति करने वाले श्री जिनेन्द्र देव में नहीं है ॥५६-६०॥ साम्यता प्रावि गुण तथा कीति, कान्ति और शान्ति प्रादि सब विशेषताए जिस प्रकार जिन बिम्ब में दिखाई देती हैं उसी प्रकार श्री जिनेन्द्र देव में विद्यमान हैं ।।६१। जिस प्रकार जिन प्रतिमाओं में मुक्ति का साधन भूत स्थिर वज्रासन और नासाप्रष्टि देखी जाती है उसी प्रकार धर्म के प्रवर्तक जिनेन्द्र भगवान् में वे सब विद्यमान हैं ॥६२।। इस प्रकार तीर्थकर प्रतिमाओं के लक्षण देखने से उनकी भक्ति करने वाले पुरुषों को तीर्थकर भगवान का परम निश्चय होता है। भावार्थ-वस्त्राभूषण तथा राग हुष सूचक अन्य चिह्नों से रहित जिन प्रतिमाओं के दर्शन से वीतराग सर्वज्ञ देव के यथार्थ स्वरूप का अवबोध होता है।।६। इसलिये उन जैसे परिणाम होने से. तथा उनका ध्यान और स्मरा पाने से तथा उनका निश्चय होने से धर्मात्मा जनों को महान् पुण्य होता है ॥६४॥ पुण्योदय से इस लोक में पुण्यशाली जनों की इस भव तथा परभव में त्रिलोक सम्बन्धी सभी अभिलषित पदार्थों की सिद्धियां संपन्न होती हैं ॥६५॥ अतः तीर्थकर प्रतिमाओं की भक्ति पूर्वक पूजा करने से सत्पुरुषों के समस्त मनोवाञ्छित फल पृथिवी तल पर तथा स्वर्गलोक में प्राप्त होते हैं ॥६६॥ जिस प्रकार दशाङ्ग कल्पवृक्ष दान देने वाले पुरुषों को संकल्पित महान भोग देते हैं उसी प्रकार पूजी हुई जिन प्रतिमाए' पूजा करने वाले पुरुषों को महान भोग देती हैं ॥६७॥ जिस प्रकार चिन्तामणि रत्न सत्पुरुषों को मन से चिन्तित पदार्थ देता है उसी प्रकार प्रचेतन प्रतिमा भी भक्ति करने वालों को मन से चिन्तित पदार्थ देती है ॥६॥ जिस प्रकार अचेतन मरिण, मन्त्र, औषध प्रादि विष तथा रोगादिक को नष्ट १. तीर्थकतृ णां प्रतिमा क.
SR No.090346
Book TitleParshvanath Charitam
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorPannalal Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages328
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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