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* श्री पार्श्वनाथ चरित -
श्रीसकलकोतिविरचिते श्रीवाश्र्वनाथचरित्रे वचनाभिचतिविभवयानो नाम
चतुर्थः सर्गः ।।४॥
और सब के द्वारा बन्दिा संधी पूजितो उ: जियो मालिक को मैं उनके गुणों की प्राप्ति के लिये स्तुति करता हूं ॥१०८।।
इस प्रकार भट्टारक श्री सकलकीति के द्वारा विरचित श्री पाश्वनाथ चरित में बचमाभि चक्रवर्ती के विभव का वर्णन करने वाला चतुर्थ सर्ग समाप्त हुआ ॥४॥