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________________ ४. ] * श्री पार्श्वनाथ चरित - चतुर्थ सर्गः जगत्त्रयगुरु बन्दे धर्मसाम्राज्यनायकम् । श्रीपावं विघ्नहन्तारं तत्पावयि सुराषितम् ।।१।। पय जम्मति द्वीपे विदेहेऽपरसंशके : पद्मास्यो विषयो। विद्यते पचं कभृतो महान् ।।२।। कुल-पर्वत-सीतोदानयोर्मध्ये स राजते । दिनदीविजयाश्च वेदीवक्षारयोमहान् ।।३।। सही विजया पखण्डीकृतोऽभवत् । म्लेच्छखण्डानि पञ्चकार्यखण्ड सत्र शर्मदम् ।।४।। यत्रार्या मुनयो नित्यं विहन्ति त्रिदोऽमलाः । भव्यधर्मोपदेशाय कारुण्यवासिताशयाः ।।५।। जिनेशा गणनातीता: पञ्चकल्याणनायकाः । जायन्ते यत्र सर्वशा विश्वनाथा जगद्धिताः ।।६।। पक्रियो वासुदेवास्तदिपवो नृसुराचिताः । रूपिणः कामदेवाश्चोत्पद्यन्ते संख्यजिताः ।।७।। अहिंसालक्षणो धर्मो मिल्यो यत्र प्रवर्तते । विप्रकारो जिमैः प्रोक्तो यतिनावकगोचर: ।।८। चतुर्थ सर्ग मैं तीनों जगत् के गुरु, धर्म साम्राज्य के नायक, विघ्न प्ररणाशक और देवों के द्वारा पूजित श्री पाश्र्वनाथ भगवान को उनकी निकटता की प्राप्ति के लिये नमस्कार करता प्रथानन्तर जम्बूद्वीप के पश्चिम विदेह क्षेत्र में लक्ष्मी से परिपूर्ण पद नामका महान वेश है ॥२॥ वह देश उत्तर दक्षिण की अपेक्षा नील कुलाचल और सोतोदा नदी के मध्य में सुशोभित है तथा पूर्व पश्चिम को अपेक्षा वेदी और घक्षार गिरि के मध्य में वो नदियों और विजयार्घ पर्वत से महान है ।। ३ ।। दो नदियों और विजयाध पर्वत के कारण वह षट्खण्ड रूप हो गया है। उसके छह खण्डों में पांच म्लेच्छ खण्ड और एक मुखदायक प्रार्यखण्ड है ।।४।। जिस देश में ज्ञानी, निर्मल चारित्र के धारक तथा दया से सुवासित हृदय वाले मुनि भव्य जीवों को धर्म का उपदेश देने के लिये निरन्तर विहार करते रहते हैं ।।५।। जहां कालक्रम से पञ्च कल्याणकों के नायक, सर्वज्ञ, सब के स्वामी और जगत के हितकारी असंख्य तीर्थकर होते रहते हैं ॥६॥ जहां मनुष्य और देवों के द्वारा पूजित पक्रवर्ती, नारायण, प्रति नारायण, और सुन्दर रूप के धारक असंख्य कामदेव उत्पन्न हुमा करते हैं ॥७॥ जहां जिनेन्द्र भगवान के द्वारा कहा हा मुनि और श्रावक सम्बन्धी दो 1. देण ।
SR No.090346
Book TitleParshvanath Charitam
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorPannalal Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages328
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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