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* चतुर्थ सगं *
[ ४१ ग्रामे ग्रामे जिनागारा हेमरत्नमयाः शुभाः । विभ्राजन्ते महोत्त ङ्गा वामिका वृषाब्धयः॥६॥ केवलशानिनो यत्र चतुःसंघविराजिताः । मुक्तिमार्गप्रकाशाय भ्रमन्ति विश्ववन्दिताः ।१०। गणाधीशा गर्णयुक्ताः समस्तद्धिविमण्डिताः । व्रजन्ति यत्र सन्मार्गोपदेशाय सुरार्चिताः ।।११॥ निर्वाणभूमयो यत्र दृश्यन्ते ५ पदे पदे । वन्द्याः पूज्याः स्तुता भव्या वातिवृषाकराः।।१२।। एका वाणी जिनेन्द्राणां श्रूयते यत्र धोधनः । संवेगतत्वबोधाय समस्तार्यप्रकाशिनी ।।१३।। प्रजा वर्णत्रयोपेताः सन्ति यत्र द्विजैविना । न्यायमार्गरता जैनधर्मदानपरायणाः ।।१४॥ कुलिङ्गिनश्च सद्भक्ताः कुदेवा हि तदालयाः। कुधर्मास्तत्प्रणेतरस्तच्छ्वाचरणान्विताः।।१५॥ कुशास्त्राणि च सहकतारः श्रोतारो न जातुचित् । दृश्यन्ते यत्र स्वप्नेऽपि धर्मभेदादयो' मसाः ।। यत्रोत्पन्ना जनाः केचित्तपसा यान्ति नि तिम् । केचित्सर्वार्थसिद्धिञ्च केचिरस्वर्ग सुखार्णवम् ।।१७।। केचित्सत्पात्रदानेन भोगभूमि वजन्त्य हो । जिनाचनेन केचिच्च प्रयन्तीन्द्राविसस्चियम् ॥१८॥ प्रकार का पहिसा लक्षण धर्म स्थायी रूप से प्रवर्तमान रहता है । जहां ग्राम प्राम में सुवर्ण और रत्नों से निमित बहुत ऊंचे शुभ जिन मन्दिर सुशोभित हो रहे हैं। वे जिन मन्दिर धर्मात्माजनों से ऐसे जान पड़ते हैं मानों धर्म के सागर ही हो ॥६॥ जहां चार संघों से सुशोभित, विश्ववन्वित केवलज्ञानी मुनि मोक्ष मार्ग को प्रकाशित करने के लिये बिहार किया करते हैं ।।१०।। जहां गणों-मुनिसंघों से युक्त, समस्त ऋद्धियों से सुशोभित और देवों के द्वारा पूजित गणधर समीचीन मार्ग का उपदेश देने के लिये गमन करते हैं ॥११॥ जहां भव्य जीवों के द्वारा धन्वनीय, पूजनीय, स्तुत्य तथा धर्म को विशाल खानों के समान वर्धनीय निर्धारणभूमियां पद पव पर दिखाई देती हैं ॥१२॥ जहां बुदिरूपी धन को धारण करने वाले भव्य जीवों के द्वारा संवेग-संसार से भय और तत्त्व पदार्थ के वास्तविक स्वरूप का जान प्राप्त करने के लिये समस्त पदार्थों को प्रकाशित करने वाली एक जिमबाणी ही सुनी जाती है । भावार्थ-जहां सार्वधर्म के रूप में एक जैनधर्म को ही प्रतिष्ठा है ॥१३॥ जहां की प्रजा ब्राह्मणों के बिना शेष तीनवों से सहित, न्याय मार्ग में रत और बनधर्म तथा दान में परायण है ॥१४॥ कुलिङ्गी कुगुरु और उनके भक्त, कुदेष और उनके मम्बिर, फुधर्म और उनकी श्रद्धा तथा प्रावरण से युक्त उनके प्रणोता, कुशास्त्र और उसके पता तथा श्रोता और धर्मभेद से युक्त नाना मत जहां स्वप्न में भी दिखाई नहीं देते हैं ॥१५१६॥ जहां उत्पन्न हुए कोई मनुष्य तप के द्वारा निवारण को प्राप्त होते हैं, कोई सर्वार्षसिडि जाते हैं और कोई सुख के सागर स्वरूप स्वर्ग को प्राप्त करते हैं ॥१७॥ कोई सत्पात्रों को बान देने से भोग भूमि जाते हैं और कोई जिनेन भगवान की पूजन करने इन माविको १. धर्मसागराः २ कषःमुनियायनगार रूपः चतुःम ३ भितु योग्याः ४. धर्मभेदोत्या मताः ।