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________________ २३. ] * भी पाबनाय परित. मुक्तालम्बनदामोधः किङ्कणोस्वनकोटिभिः । प्रहसम्भिव तोषात्तद्रश्मिभिमणिनिर्मितम् ॥१०॥ शरद भ्रमिवात्यन्तशुक्लं श्वेतितदिम्मुखम् । तुङ्गवंशं सुदोङ्ग सवृत्तोनतमस्तकम् ॥११॥ लक्षणव्यंजनेयुक्त जवनं नलिनं परम् । तिर्यग्लोकायतस्थूलक्रमवृत्तणुसकरम् ॥१२॥ वृत्तगात्रं सुलीलाढय महान्तं दुन्दुभिस्वनम् । मदनिर्भरव्याप्ताङ्ग कल्याणप्रकृतिं वरम् ।।१३॥ लक्षयोजनविस्तीर्ण हेमकक्षं गुणान्वितम् । अषयमालया षण्टाद्वयेन परिपूषितम् ॥१४॥ अनेकवर्णनोपेतं दिव्यरूपं झयुत्तोपमम् ।'नागवत्तामियोग्येशो नागमैरावतं ध्यषात् ||१५| तमैरावणमारूढः सहस्रामो व्यभातराम् । उदयाचलमाटो यथा भानुः स्वसेजसा ॥१६॥ द्वात्रियवदनान्यस्य सादृश्णनि भवन्ति । शास्यमष्टदताः स्यूला दीर्घा: किरणाकुसाः ।११ प्रसिदन्तं सरो होक स्वच्छनीरभृतं महत् । सर: प्रति महारम्याप्यस्मिन्येका वरोत्पला ।।१।। द्वात्रिशरकमलान्यासा प्रत्येक स्युमेहान्ति हि । कमल प्रति द्वात्रिंशद्दोधपत्राणि निश्चितम् ।।१७। तेष्वायतेषु सर्वेषु नर्तक्योऽभुतदर्शनाः । विच तो वा नन्ति स्म द्वात्रिंशसंख्यकाः पृथक्॥२०॥ विमान बनाया ॥६॥ वह मरिणनिर्मित विमान मोतियों को लटकती हुई मालाओं के समूहों, फिरिणयों क्षुद्र घष्टिकानों की करोड़ों रुणभुमों और मणियों की किरणों से ऐसा जान परता था मानों हंस ही रहा हो ॥१०॥ मागवत नामक प्राभियोग्य जाति के देव ने ऐसा ऐरावत हाथी बनाया जो शरदऋतु के मेघों के समान अत्यन्त शुक्ल था, जिसने विशामों के अग्रभाग को श्वेत कर दिया था, जिसकी रीह बहुत अची थी, जिसका शरीर बहुत लम्बा था, जो गोल तथा ऊंचे मस्तक से सहित था, लक्षण और व्यजनों से सहित था, वेगशाली था, अत्यन्त बलिष्ठ था, जिसकी सूड मध्यम लोक के बराबर लम्बी, मोटी, क्रम से बढ़ती हुई गोलाई से युक्त तथा सीधी थो, जो एक लाख योजम विस्तार पाला था, सुवर्य की मालाओं से युक्त था, अनेक गुणों से सहित था, कण्ठमालामों और वो अन्टामों से विभूषित था, अनेक वर्णनामों से सहित था, विष्यरूप का धारक तथा निरुपम या।१५॥ उस ऐरावत हाथी पर बैठा हुमा सौधर्मेन्द्र अपने तेज से, उदयाचल पर पारुढ सूर्य के समान अत्यन्त सुशोभित हो रहा था ॥१६॥ इस ऐरावत हाथी के एक समान बत्तीस मुख थे और प्रत्येक मुख में स्यूल, दीर्घ तथा किरणों से युक्त पाठ पाठ दांत थे॥१७॥ प्रत्येक बात पर स्वच्छ जल से भरा हुमा एक एक विशाल सरोवर था, और एक एक सरोवर में उत्तम कमलों से युक्त अत्यन्त सुन्दर एक एक कमलिनी थो॥१८॥ एक एक कमलिनी में बत्तीस बत्तीस बहुत बड़े कमल थे और एक एक कमल में निश्चित रूप से बत्तीस बत्तोस विशाल पते थे ॥१६॥ उन लम्बे पत्तों पर अद्भुत दिखाई देने वाली बत्तीस बत्तीस १. नागदत्तनामक भाभियोग्यजातिको देवः २. सौधर्मन्द्रः ३. प्रतिमुलं ।
SR No.090346
Book TitleParshvanath Charitam
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorPannalal Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages328
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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