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________________ ४ ] * श्री पार्श्वनाथ चरित * समन्ताद्भुवने भद्रा थानाध्ययनसंसक्ताः स्वकार्य करणे रताः । सर्दहकमलान् स्तौमि तद्योगशक्तिहेतवे ।। २४ ।। बभूव यत्प्रसादेन कवित्वादिविवो क्षमा । हगाविभूषिता दक्षागमे मे सम्मतिः शुभा || २५ || तां जिनेन्द्रमुखोत्पन्नां जगता मातरं पराम्। प्रज्ञानध्वान्त हन्त्री शारदा' नौमि पदाप्तये ||२६|| त्रिजगत्पूज्यसिद्धान्तं विश्वतस्व प्रदीपकम् जैनं तदाप्तये बन्दे दुरन्तदुरितापहम् ||२७|| जैन शासनमाहात्म्य प्रकाशनपरान् वरान् । महाकवीन् महर्षीश्च द्वादशाङ्गाधिपारगान् ||२६| गोतमादीन् गणाधीशान् विश्वनायेर्भुतक्रमान् । वन्दे सर्वहितान् मूर्ध्ना तद्गुणग्रामहेतवे ॥२६॥ येन पूर्वविदेहे साक्षाज्जिनेन्द्रो नमस्कृतः । नमामि शिरसा कुन्दकुन्दाचार्य कवि हितम् ||३०|| कलङ्कातिगवाक्याय" कवित्वादिगुणान्धये । वादिने धर्मस्थैर्यायाकलङ्कस्वामिने नमः ||३१|| विश्वलोकोपकारिणी । यद्वाशी तं प्रवन्दे समन्तभद्रकवीश्वरम् ।। ३२ ।। के लिये सिद्ध करते हैं-वश में करते हैं, दूसरों के लिये सिद्धि को देने वाले हैं, ध्यान औौर श्रध्ययन में लीन रहते हैं तथा आत्म कार्य-समता वन्दना आदि आवश्यक कार्यों के करने में तत्पर रहते हैं उन साधु परमेष्ठी के चरण कमलों की मैं उनकी योग शक्ति-ध्यानक्षमता को प्राप्त करने के लिये स्तुति करता हूँ ।। २३-२४ ।। सम्यग्दर्शनादि गुणों से विभूषित तथा आगम में समर्थ मेरी शुभ सद्बुद्धि जिसके प्रसाव से कविता श्रादि के निर्माण में समर्थ हुई है, जो जिनेन्द्र भगवान् के मुखारविन्द से प्रकट हुई है, जगत् की माता स्वरूप है, उत्कृष्ट है तथा प्रज्ञानरूपी अन्धकार को नष्ट करने वाली है उस सरस्वती जिनवाणी की मैं उसके पक्ष की प्राप्ति के लिये स्तुति करता हूं ।। २५-२६ ।। जो समस्त तवों को प्रकाशित करने वाला है, तथा दुःखदायक पापों को नष्ट करने वाला है ऐसे जिनेन्द्र प्रस्पीत त्रिजगत्पूज्य जिनागम को मैं उसकी प्राप्ति के लिये वन्दना करता हूँ ॥२७॥ जो जैन शासन के माहात्म्य को प्रकट करने में तत्पर हैं, उत्कृष्ट हैं, महा कवि हैं, महर्षि हैं, द्वादशाङ्गरूपी समुद्र के पारगामी हैं, समस्त राजानों के द्वारा जिनके चरणों की स्तुति की जाती है तथा जो सबका हित करने वाले हैं ऐसे गौतम श्रादि गणधरों को मैं उनके गुण समूह की प्राप्ति के लिये मस्तक झुका कर बन्दना करता हूँ ।। २८- २६|| जिन्होंने पूर्व face क्षेत्र में जाकर सीमन्धर जिनेन्द्र को साक्षात् नमस्कार किया था उन हितकारी कुन्दकुन्दाचार्य को मैं शिर से नमस्कार करता हूँ ||३०|| जिनके वचन बोधों से रहित हैं, जो कवित्व आदि गुणों के सागर हैं, याद करने में निपुण हैं और धर्म में दृढ़ता उत्पन्न करने वाले हैं ऐसे श्री प्रकलङ्क स्वामी को नमस्कार करता हूँ ||३१|| जिनकी वारणी जगत में सब ओर से कल्याणरूप तथा समस्त लोगों का उपकार करने वाली है। उन समन्तभद्र १. सरस्वती जिनवाणीं २. स्तुतचरणान् ३ तद्गुणसमूह प्राप्तिहेतवे ४. निर्दोषवताय ५. कल्याणकारिणी
SR No.090346
Book TitleParshvanath Charitam
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorPannalal Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages328
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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