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________________ १५६ ] * श्री पारर्वनाथ चरित * त्रयोदशः सर्गः नमः श्रीपञ्चकल्याणभागिनेऽनन्तशर्मणे ।हन्ने विश्वायविध्नानां श्रीपाश्र्वाय जितात्मने ।। १५ प्रपाभिषेके संपूर्णे होन्द्राणी त्रिजगद्गुरोः । प्रसाधन विधौ यत्नमरोबहुकौतुका ॥२॥ निसर्गतिपवित्रस्याभिषिक्ताङ्गजिने शिनः । ममार्जाङ्गास्यलग्नाम्भःकणान्सात्यमलांशुक: ।।३।। शमी गात्रं जिनेन्द्रस्य दिव्यामोदविलेपनः । मन्वलिप्यत लिम्पद्भिरिवामोदर्जगद्गृहम् ।।४।। त्रैलोक्यतिलकस्यास्य ललाटे तिलकं महत् । शची चक्रे मुदा केवलं स्वाधार प्रसिद्धये ॥५॥ जगन्धुगमणेरस्य मूनि मन्दारमालया । उस्तसं च दधे चूडामणिसान्निध्यमूर्जितम् ॥६॥ जगन्ने त्रस्य तीर्थेशस्य महादिव्यचक्षुषोः । साधादजनसंस्कार स्वाचार इति लभ्यते ॥७।। कर्णावविक्षसचिछद्रावलंचक्रे शची मुदा ।कुण्डलाम्यां विजितेन्दुभ्यां मरिण रश्मिकोटिभिः८॥ पोश सर्ग जो पञ्चकल्यारण को प्राप्त हैं, अनन्तसुख से संपन्न हैं, समस्त पुण्य कार्यों में प्राने वाले विघ्नों के नाशक हैं तथा जितेन्द्रिय हैं उन पाश्वनाथ भगवान के लिये नमस्कार हो॥१॥ प्रयानन्तर अभिषेक पूर्ण होने पर बहुत भारी कौतूहल से युक्त इन्द्राणी तीनों जगत् के गुर जिनेन्द्र देव को अलंकार धारण कराने में यत्न करने लगी॥२।। सर्व प्रथम इन्द्राणी ने स्वभाव से पवित्र तया अभिषिक्त अङ्ग वाले जिनेन्द्र के शरीर और मुख में लगे हुए जलकरणों को प्रत्यन्त निर्मल वस्त्रों से साफ किया ।।३।। जो अपनी सुगन्ध से जगवरूपी घर को लिप्त कर रहे थे ऐसे विव्यगन्ध वाले विलेपनों से इन्द्राणी ने जिनेन्द्र के शरीर को लिप्त किया ॥४॥ तीन लोक के तिलस्वरूप इन भगवान् के ललाट पर इन्द्राणी ने हर्षपूर्वक जो बड़ा तिलक लगाया यह मात्र अपने नियोग की पूर्ति के लिये लगाया था शोभा के लिये नहीं ॥५॥ जगत् के चूडामरिण स्वरूप इन जिनेन्द्र के मस्तक पर मन्चार माला द्वारा चूडामरिण के सन्निधान से श्रेष्ठ प्राभूषण धारण किया अर्थात् उनके चूडामणि के समीप कल्पवृक्षों की माला पहिनाई ॥६॥ जगत् के नेत्रस्वरूप तीर्थकर के महान् विष्य नेत्रों में जो उसने अञ्जन लगाया था वह अपने नियोग से ही लगाया था ऐसा जान पड़ता है ॥७॥ विना वेधे हो छिव सहित उनके कानों को इन्द्राणी ने रत्तरश्मियों के अग्रभाग २. निसिलपुण्यान्तरायाणां ।
SR No.090346
Book TitleParshvanath Charitam
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorPannalal Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages328
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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