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________________ १३४ ] * श्री पार्श्वनाथ चरित * सादरं दिवकुमारीभिः सा धन्या पर्युपासिता । तत्प्रभावेरिवाविष्टः संगमार परां श्रियम् ||६६ ॥ अन्तर्वत्नी मथाभ्यर्णे नवमे 1 मासि संभ्रमम् । दिव्यार्थ काव्यगोष्ठीभिर्देव्यस्तामित्यरञ्जयन् ॥७०॥ निगूढार्थक्रियापादविन्दुमात्राक्ष रच्युतैः | श्लोकं रम्यैश्च तां देव्यो रमयामासुर तैः ॥ १७१ ॥ का भवत्या समा नारी जगत्त्रयसुरचिता । या सूते लीयंकर्तारं सा गरिष्ठा न चापरा ।।७२। के शुरा ये जयन्त्यत्र कषायाश्व दुर्जयान् । पञ्चाक्षसुभटान् घोरान परीषहानचापरे ।। ७३ ।। के कातरा जगत्यस्मिन् नश्यन्ति वृत्तसङ्गरे । परीषहरूषायासंजिता ये ते परे न ज ।। ७४ । । के सत्पुरुषा ये सत्तपोवृत्तमादिकात् । स्वीकृत्म नैव मुञ्चन्ति जातु प्राणात्ययेऽपि ते ॥७५॥ केऽत्र कापुरुषा धृत्वा तपो वा चरणादि ये परीषभयान्मुञ्चन्ति तेऽन्ये न भवन्ति च ।। ७६ ।। 1 किसी तरह एकरूपता को प्राप्त जगत् की लक्ष्मी ही हो ।। ६८ ।। दिक्कुमारी देथियों के द्वारा प्रादरपूर्वक जिसकी सेवा की जा रही थी ऐसी वह भाग्यशालिनी माता अपने आप में प्रविष्ट हुए के समान दिखने वाले उन देवियों के प्रभाव से अत्यधिक शोभा को धारण कर रही थी ।। ६६ ।। अथानन्तर नवम मास के निकट प्राने पर वे देवियां गर्भिणी जिन माता को दिव्य अर्थ से युक्त काव्यगोष्ठियों के द्वारा हर्षपूर्वक इस प्रकार प्रसन्न करती थीं ॥७०॥ वे वैवियां निगूढार्थ, निगूढक्रिया, निगूढपाद, बिन्दुष्युत, मात्राच्युत, अक्षरभ्युत, तथा अन्य आश्चर्यकारक श्लोकों के द्वारा उसे प्रानन्वित करती थीं ।।७१|| कभी प्रश्नोत्तरावली के रूप में वे देवियां जिनमाता से प्रश्न करती थीं कि तीनों जगत् के देवों से पूजित प्रापके समान दूसरी स्त्री कौन है ? इस प्रश्न का माता उत्तर देती थी कि जो स्त्री तीर्थकर को उत्पन्न करती है वही श्रेष्ठ स्त्री मेरे समान है अन्य नहीं ।। ७२ ।। कभी देवियां पूछती थीं कि शूरवीर कौन है ? माता उत्तर बेली थो कि जो इस जगत् में बुर्जेय कषायरूपी शत्रुम्रों को, पञ्चेन्द्रिय रूप सुभटों को तथा घोर परिषहों को जीतते हैं वे ही शूरवीर हैं, अन्य नहीं ||७३ || कभी देवियों पूछती थीं कि इस जगत् में कायर कौन है ? माता उत्तर देती थी कि जो चारित्ररूपी युद्ध में परिषह, कषाय और इन्द्रियों के द्वारा पराजित होकर नष्ट हो जाते हैं वे ही कायर हैं। अन्य लोग नहीं ||७४ || कभी देवियां प्रश्न करती थीं कि इस लोक में सत्पुरुष कौन है ? माता उत्तर देती थीं कि जो उत्तम तप, चारित्र तथा यम, इन्द्रिय-दमन श्रादि को स्वीकृत कर प्राणघात होने पर भी कभी उन्हें छोड़ते नहीं हैं वे ही सत्पुरुष हैं ||७५ || कभी वेवियां पूछती थीं कि इस जगत् में कापुरुष कौन हैं ? माता उत्तर ९. गभिशीम् ।
SR No.090346
Book TitleParshvanath Charitam
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorPannalal Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages328
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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