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________________ प्रथम सर्ग तस्मिम्परिचयावभ्यासात् । 'पुण्यपाकाविनळ्यद्गर्भावानक्षणपरिचयात्' इति पाठः सम्यक् । तत्पक्षे विन व्यतीति विनक्ष्यन् । 'ना प्रदर्शने' लट् । 'तास्यो लुलोः' इति स्पः । 'नस्भरजसोमम्' इति नम् । न विनइ क्ष्यन्नविनश्यन् पुण्यसाकेनाविनद्दयन् पुण्यपाकाबिनयन् । अन्यत्र पूर्ववियरतगमस्वीकारादित्यर्थः । नूनं निपचयन । स्वां भवन्नम् । वृगते मंबन्ने ।। ३९ ।। अन्वय-यदि च युद्धं शौण्डः, स्वर्ग-त्रीणां अहमहमिका मंविधास्मन् भगवान् वीरमाच्या श्रितः स्थाः तदा पुण्यपाकात् बिनङ श्याद्गर्भापानक्षणपरिचयात नमि आवश्चमालाः विद्याधयः त्वां वृणते । ___अर्थ-यदि युद्ध में प्रवीण हो तो स्वगं की स्त्रियों में मैं पहले, मैं पहले इस प्रकार की स्पर्धा कराते हुए हे भगवान् यदि आप वीरशय्या का आश्रय प्राप्त करोगे तो आपके पुण्य के उदय में नष्ट होते हुए गर्भाधान के उत्सव में परिचय मे आकाश में पंक्ति बांधे हुए विद्यारियां तुम्हारी सेवा करेंगी। व्याख्या-यदि आप युद्ध में प्रवीण हैं तो देवांगनाओं में आपको पहले पाने की स्पर्धा होगी । यदि बुद्ध करते हुए मरण को प्राप्त होगे तो आकाश में विद्यारियाँ आपकी सेवा करेंगी। उनसे सेवित होने पर आपको सुख होगा, जो कि आपकी तपस्या का उद्देश्य है। अतः समाधिभंग होने पर युद्ध भूमि में मरण होने पर सुख उत्पन्न नहीं होगा, ऐसा मत मानो, अपितु नमाधि के द्वारा जिस सुख को पाना चाहते हो, रण क्षेत्र में मरने पर वैसा हो सुख तुम्हें प्राप्त होगा। योगिराट् पण्डिताचार्य ने पुण्यपाकाविनक्ष्यद्गर्भाधानक्षणपरिचयात् पाठ को ठीक माना है। ऐसा मानने पर अर्थ हांगा-( तुम्हारे ) पुण्य के परिणामस्वरूप नष्ट न होते हुए गर्भ के आधान का उत्सव मनाने की अभ्यासी विद्यापरियाँ आकाश में पक्तियां बाँध बाँधकर तुम्हारी सेवा करेंगी । तात्पर्य यह है कि गर्भाधान के बाद गर्भ का पहले पतन हो जाना था, किन्तु अब पार्श्व के दर्शन से गर्भ स्थिर हो गया है । अतः विद्याधरियों के आनन्द की वृद्धि हो रही है तथा आनन्दित होकर विद्यारियां सेवा कर रही हैं । यह सब पार्श्व के पुण्य की ही गहिमा है। मूर्छासुप्तं विवशनिहिताम्लानमन्वार मालं, तूर्यध्यानस्तनितमुखरं दिव्ययानाधिरूढम् । खामुग्रन्तं सजलजलदाशवयाऽबद्धमालाः, सेविष्यन्ते मयनासुभग से भवन्तं बलाकाः ॥ ४० ॥
SR No.090345
Book TitleParshvabhyudayam
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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