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________________ प्रथम सर्ग इतिविश्वः । राज्ञां रामा राजगजः कुबेरः । 'राजराको धमाधिपः' इत्यमरः । 'राणान्सझे इत्यद । तस्य अनुचरो यक्षः । सः कमठपरः। चिरं बहुकालम् । वघ्यो चिन्तयामास ! ध्ये स्मृ निम्नायाम् । इति धानो: निट् 'नो नोणमेकोशात प्रत्यौकारः । युग्मम् ।।१०।। अन्वय----सः असौ जाल्मः कपटहृदयः दैत्यपाशः, हतशः, स्फून्निजलमुचः कालिमानं दधानः स्वात्मयोगें निविष्ट अनर्घ मुनिय किञ्चित् पश्यन्, मनसि गाठासूयां निदधत्. रोपात स्वेदविन्दून वहन स्वयंक्रूरः मृत्युः इब अपघृणः बैर स्मृत्वा मुनि निकामं हन्तुकामः क्रोषात् कौतुकापानहेतोः तस्य पुरः कथमपि स्थित्वातधोपायं इच्छन् अन्तभिः राजराजस्य अनुचरः ।।९-१०॥ ____ अर्म-कर ( गुण दोष के विचार से शून्य ), कपट हृदय, निन्दितदेव, निर्दय, चिरंदध्य गर्जना करते हुए नए मेघ के समान कालिमा को धारण करते हुए उस कमठ के जीव यक्ष ने ध्यानयोग में निमग्न, नियाप उन पार्श्वनाथ मुनीश्वर को कुछ देखकर मन में गाढ मसूथा ( असूयाः = दूसरे के गुणों में भी दोष देखना ) को धारण करते हुए, रोष से पसीने को बिन्दुओं को धारण करते हुए, स्वयं क्रूर मृत्यु के समान निर्दय हो, बैर का स्मरण कर मुनि को यथेष्ट रूप से क्रोधपूर्वक मारने की इच्छा की पूर्ति के लिए उनके समीप में जिस किसी प्रकार ( बड़े प्रयत्न से ) ठहरकर उनके वध के उपाय की इच्छा करते हुए आंसुओं को अन्दर छिपाकर कुबेर के सेवक के समान अधिक समय तक विचार किया। व्याख्या-क्रूर और कपट हृदय वाले उस यक्ष ने पार्श्वनाथ मुनीश्वर को ध्यान योग में निमग्न देखा। उनके प्रति वह गाढ़ असूया को धारण कर रहा था । क्रोध के कारण उसके शरीर पर पसीना उभर आया था। वह यक्ष उस समय मृत्यु के समान निर्दम हो गया था। उसने पूर्वजन्म के वेर का स्मरण कर मुनि को मारने की इच्छा से उन्हें बहुत देर तक देखा । विरह व्यथा के कारण उसने नेत्रों में आँसू भरे हुए थे।। किन्तु प्रकट न करने के उद्देश्य से उसने उन्हें अन्दर ही अन्दर छिपा लिया था। उस समय वह यक्ष गर्जना करते हुए नूतन मेघ के समान कालिमा को धारण कर रहा था। कमठ वास्तव में कुबेर का अनुचर नहीं था, किन्तु अपने व्यवहार से वह कुबेर का अनुचर लग रहा था ।।९-१०।। मेघेस्तावत्स्तनितमुखरैविधुदुद्योतहासश्चित्तं क्षोभान्तिरवसदृऔरस्य कुर्वे निकुर्वन् ।
SR No.090345
Book TitleParshvabhyudayam
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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