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________________ पार्वाभ्युदय णिस्तु कूपरः । अस्योपरि प्रगामः स्यात्प्रकोष्ठस्तस्य चाप्यवः' इत्यमरश्च । अत्रोपलक्षणभूतेन वलयभ्रंपोन दुःखाधियं विरागश्च व्यज्यते । अस्पनूचामवृस्पा अत्यन्तविनीतवतंनेन । 'अनूचानो विनीते स्यात्साङ्ग वेदविचक्षणे' इति विश्वः । 'वृत्तिर्वर्तनजीवने' इत्यमरः । कतिचित् फियतः । मासान नौस्या यापयित्वा । अनुशयात् पश्चात्तापात् । 'अथाऽनुशयो घोघ द्वेषानुतापयोः' इत्यमरः । यं च भातरम् । गनिमाता अन्वयः ! TEEL : गोप काग | उत्तरारोहोलान् उत्तरः आरोहो येषां शैलानां ते तथोक्तास्तान् उपरिभाषप्रचारयोग्यामद्रीनित्यर्थः । 'उपर्युदीच्यश्रेष्ठेष्यप्युत्तरं स्वादनुस्तरम्' इत्यमरः। मन्त्र शैलस्य उत्तरारोहविशेषर्ण नरविहारोचितानाम-द्रीणां निरवशेषत्वं व्यजयति । चिरं बहवासरान् । 'चिरायचिररात्रायचिरस्याद्याशिवरार्थकाः इत्यमरः । उपभ्रान्तः परिचमति स्म ॥६|| अन्यय--पंच' अनुशयात् अन्दिष्यन् भ्रातृभक्तः अवशात् शोकात् देहे अत्यनृचानवस्या कनकवलय प्रशरिक्त प्रकोष्ठः कनीयान् कतिचित्त मासान् मीत्वा धनं, नदी अथ उत्तरारोहीलान् चिरं अत्युभ्रान्तः ।। अर्थ-पश्चाताप के कारण जिसकी खोज में भाई का भक्त छोटा भाई अनधीन दुःख के कारण शरीर के प्रति तपस्वियों जैसे व्यवहार के कारण .सोने के कंकण के गिरने से रिक्त कलाई वाला हो कुछ माह बिताकर वन, नदी और ऊँची चढ़ाई वाले पर्वतों में चिरकाल तक अत्यधिक भ्रमण करता रहा। ध्याख्या-भाई के चले जाने पर छोटे भाई को अत्यधिक पश्चाताप हमा । दुःख को सहन न करने के कारण उसने शरीर के प्रति ममता त्याग दी और केवल देह धारण के लिए हो ( रसद्धि के लिए नहीं} अन्नपान ग्रहण करने लगा। वह इतना दुर्बल हो गया था कि हाथ से सोने का कंकण गिर जाने के कारण उसकी कलाई सूनी पड़ गई। ऐसी हालत में वह कुछ मास तक तो घर पर ठहरा | अनन्तर अपने भाई की खोज में वन, नदी और ऊँचे-ऊँचे पर्वतों पर भ्रमण करने लगा। यं चापश्यदिगरिवननदोः पर्यटन्सोपि कृन्ड्रादध्वनान्तः कतिपयकैसिरैरविकुजे । दूराद्धूमप्रततवपुषं नीललेश्यं यथोग्चै राषाढस्य प्रथमदिवसे मेघमाश्लिष्टसानुम् ।। ७॥ यं चापश्यदिति । सोऽपि मरुभूसिरपि । गिरिवरनवी: पर्वतकान्तारसरितः । कृपक्रात कष्टात् । 'स्यात्कष्टं कुच्छूमाभीलम्' इत्यमरः । पर्यटन् पर्यटनीति
SR No.090345
Book TitleParshvabhyudayam
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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