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________________ प्रथम सर्ग अम्बय-यस्मिन् मावा स्थपुटिततलः, प्रदेशाः दावदग्धाः, वृक्षाः, शुष्काः न उपभोग्याः विविधवृतयः न गम्याः तस्मिन् अद्रो यः अबलाविप्रयुक्तः स कामी शुष्कवैराग्यहेतोः कतिचित् अष्मान् दिवसान् नयति स्म। ____अर्थ-जिसमें पत्थर ऊँचे नीचे तल भाग वाले थे, जिसके प्रदेश दावाग्नि से दग्ध थे, जहां वक्ष शुष्क होने के कारण उपभोग के योग्य नहीं थे, अनेक प्रकार के काँटों से नेष्टित होने के कारण गामा करने योग्य नहीं थे उस भूताचल पर्वत पर अपनी भाई की पत्नी इत्वरिकातुल्य बसुन्धरा से अलग हुए उस कामी ने शुष्क वैराग्य के कारण कुछ गर्मियों के दिन बिताये। __व्याख्या-वह भूताचल पर्वत पत्थरों के पड़े रहने के कारण ऊँचा नीचा था । वहाँ गर्मी के कारण वृक्ष सुख गए थे। अतः उनसे फलादि की प्राप्ति नहीं हो सकती थी। उस प्रदेश में अनेक काटे आदि पड़े हुए थे, अतः वहीं गमन करना कठिन था। ऐसे स्थान पर कमठ तपस्या करता था, किन्तुं उसके वैराग्य का कारण शक था; क्योकि वह काम और क्रोध से अभिभूत होकर तपस्या कर रहा था । अपने भाई की पत्नी के साथ सहवास करने के कारण वह कामी था और चूंकि राजा अरविन्द ने उसे देशनिकाला दे दिया था, इस कारण वह क्रोधित था। यहां वसुन्धरा के लिए अबला शब्द प्रयुक्त करने का कधि का तात्पर्य यह है कि कमठ ने उसके पति की अनुपस्थिति में उसके साथ सहवास किया था और वह उसकी. योजना को असफल करने में असमर्थ थी, अतः अबला थी। यं चान्विष्यन्धनमथ नदीमत्तरारोहशैलानित्युझान्तश्विरमनुशयाभ्रातृभक्तः कनीयान् । शोकाद्देहे कतिचिदवशावत्यनूचानवृत्त्या, नीत्वा मासान्कनकवलय_शरिक्तप्रकोष्ठः ।।६।। यं चेत्यादि । अथ अमन्तरे। 'मङ्गलानन्तरारम्भप्रपनकात्सर्येष्वथो अथ हत्यमरः । भ्रातृभक्तः ज्येष्ठभ्रातृयत्सलः । कनीयान् मरुभूतिः। 'कनीयांस्तु युवाल्पयोः' इत्यमरः । वेहे शरीरे। मवशात् अनवीनात् । अपरिमितादित्यर्थः। बरकात दुःखात् । कनकवलय अंतरिक्तप्रकोष्ठः । कनकस्य वलय इति तत्पुरुषः । 'कटक वलयोऽस्त्रियाम्' इत्यमरः सस्प । भ्रशाः पातः | 'षो अंशो यथोचिसात्' इत्यमरः । तेन रिक्तो विकला प्रकोष्ठः कुर्पराघः प्रदेशो यस्य स तथोक्तः सन् । 'कक्षान्सरं प्रकोष्ठः स्यात् । प्रकोष्ठ कूपरः' इति शाश्वतः । 'स्पात्लफो.
SR No.090345
Book TitleParshvabhyudayam
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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