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पाश्र्वाभ्युदय
कथावतार
इसी भरतक्षेत्र के पोदनपुर नगर में राजा अरविन्द पृथ्वी का पालन करता था। उसके विश्वभूति नामक ब्राह्मण से उत्पन्न जिनका नाम क्रमशः कमठ और मरुभूति था, मंत्री थे। उन दोनों की क्रमशः वरुणा
और वसुन्धरा पत्नी थीं। उनमें से छोटा भाई मरुभूति एकबार वनवीर्य नामक शत्रु राजा पर विजय प्राप्त करने के लिए अपने राजा अरविन्द के साथ गया । अवसर पाकर दुराचारी बड़े भाई कमठ ने अपनी पत्नी वरुणा से कहलाकर वसुन्धरा नामक भाई की पत्नी को अङ्गीकार कर लिया। राजा जब शत्रु पर विजय प्राप्त कर स्वदेश आया तो उसे कमठ का दुराचार मालुम हुमा । उसने मरुभूति से भाई की पत्नी को अङ्गीकार करने वाले का क्या दण्ड होता है, पूछकर मरुभति के नगर में प्रवेश करने से पहले ही सेवक के मुख से दुःसह आज्ञा दिलाकर, हमारी आँखों से ओझल हो जाय, ऐसा कहकर कमठ को नगर से बाहर निकाल दिया। कमठ भी भाई पर ऋद्ध हो वन में जाकर तापस का याचरण करने लगा। जब मरुभूति आया और उसे भाई का समाचार ज्ञात हया तो उसे बड़ा पश्चाताप हुआ । वह उसे खोजकर उसके क्रोध की शान्ति के लिए उसके दोनों चरणों में गिर पड़ा । कमठ ने क्रोधित होकर अपने मस्तक पर स्थित शिला उसके ऊपर गिरा दी, जिससे वह मर गया । इसी प्रकार दूसरे भवों में भी उसी के द्वारा मारा जाकर मरुभूति का जीव वाराणसी नगरी के विश्वसेन महाराष की पत्नी ब्राह्मी देवी के पाश्वनाथ नामक तीर्थंकर पद का धारी, पञ्चकल्याणाधिपति पुत्र हुआ। कमठ का जीव चिरकाल तक संसार में भ्रमण कर शम्बर नामक ज्योतिषी देव हुआ। एक बार जब पार्श्व दीक्षा मल्याणक के अनन्तर इच्छानुसार विहार करते हुए प्रतिमायोग में स्थित हो गए तो उन मुनीन्द्र को देख कमठ के जीव ने उन पर घोर उपसर्ग किया, इस प्रकार सम्पूर्ण कथा पुराणों से विस्तारपूर्वक जानना चाहिए। यहाँ पर शम्बर नामक ज्योतिषी देव का दैत्येन्द्र अथवा यक्षेन्द्र होना, अलकापुरी में निवास करना, अपने स्वामी के द्वारा एक वर्ष के लिए शाप दिया जाना आदि दुसरे काव्य का अनुसरण मात्र होने से कल्पित हैं। अतीत और वर्तमान जन्म में अभेद की स्थापना करते हुए इस प्रबन्ध की रचना की गई है, ऐसा विद्वानों को जानना चाहिए ।