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________________ पाश्वभ्युदय ही जिसमें लहरें है, जो गुणरूपी ररनों से भरा हुआ है, उच्च और मनोहर शब्दों से मुक्त है तथा जिसमें मुरु-शिष्य परम्परारूप विशाल प्रवाह चला या रहा है ऐसा यह महाकवि समुद्र के समान आचरण करता है ।१०६ इस प्रकार कवि ने यहाँ महाकवि को वृक्ष के समान उन्नत और समुद्र के समान गम्भीर बतलाया है। निनसेन का पविश्य आचार्य जिनसेन धर्मशास्त्र के ज्ञाता होने के साथसाथ भारतीय दर्शन, राजनीति, कला, तत्कालीन सामाजिक जीवन आदि के अच्छे ज्ञाता थे। उनका आदिपुराण एक आकर ग्रन्थ है जिसमें नौवीं शताब्दी के भारत का भौगोलिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, आर्थिक और सामाजिक रूप चित्रित करने के साथ-साथ काव्य का चरम रूप उपस्थित किया गया है। आदिपुराण में प्रतिबिम्बित सांस्कृतिक जीवन, क्रीड़ा विनोद, गोष्ठियां, उसक, प्रत, उपवास, शिक्षा तथा ललितकलावें जिनसेन के सूक्ष्मयाही दृष्टि को अभिव्यक्त करती है। आदिपुराण में की गई भूत चैतन्यवाद, विज्ञानवान, शून्यवाद, क्षणिकवाद, सांख्यदर्शन, न्यायदर्शन, योगदर्शन, अद्वैतवाद, द्वैतवाद आदि की समीक्षा से विदित होता है कि उन्होंने विभिन्न भारतीय दर्शनों का आलोहन किया था। कर्मसिद्धान्त जैसे सूक्ष्म और कठिन विषय पर उनकी चालीस हजार लोक प्रमाण जयघवला की अवशिष्ट टीका उनके तलस्पर्शी शानको सूचित करती है। इन सब कारणों से लोगों ने उन्हें ज्ञानपिण्ड कहा, उसमें आश्चर्य और अतिरंजना के लिए अबकाश नहीं है। उनकी एक-एक कृति उनके पाण्डित्य का मूढान्त निदर्शन है। अपनी विद्वत्तापूर्ण और शिक्षाप्रद कृतियों के द्वारा भारतीय साहित्य और समाज में ही नहीं, विश्व साहित्य और समाज में अग्नगण्य रहेंगे। पाश्र्वाभ्युदय के टीकाकार-पारम्धुिदय की संस्कृत टोका के टीकाकार योगिराट् पण्डिताचार्य श्रवणवेलगोला के जैनमठ के गुरु थे। उन्होंने पार्खाभ्युदय के अन्तर्गत बाई हुई मेघदूत की पंक्तियों की व्याख्या करते समय अत्यधिक रूप से मल्लिनाथ का अनुसरण किया है । उन्होंने जैनेन्द्रव्याकरण और मानार्थरत्नमाला को भी बहुषा उद्धृत किया है। नानारत्नमाला की रचना इतपदण्डनाथ ने की थी, जो कि जैन थे और विजयनगर राज्य के राजा हरिहर द्वितीय (शक सं० १३२१) के आश्रित थे। इस प्रकार योगिराट् पण्डिताचार्य का समय १३२१ के बाद का बैठता है।०७ पण्डिताचार्य जी ने उपोषात में लिखा १०६. वही १४१०२-१०४ १०७. पाम्पुिक्ष्य-प्रस्तावना (ले. पन्नालाल वाकसीवाल)
SR No.090345
Book TitleParshvabhyudayam
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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