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________________ चतुर्थ सगं ३३१ से अथवा यह विधुर ( पाप से भयभीत या दुःखाकुल ) है, ऐसा विचार कर मेरे प्रति अनुकम्पा भाव रखकर अशरण, निर्दय, अत्यन्त प्रौइमाया युक्त, दुष्टाभिलारी ( एवं ) पश्चाताप के कारण चरगों में गिरे हुए मुझे पाप रहित करो। इत्थशारं कमठमनुजः स्वापकारं प्रमार्जन, भूयः स्माह प्रकटितमहाभोगभोगोन्द्रगूढः । लोकालावी नव इव घनो देव धर्माम्बुवर्षम्निष्टान्देशान्धिचर जलप प्रावृषा सम्भृतश्रीः ॥६४।। इत्यकारमिति । इत्यंकारम् इत्यमेव इत्यङ्कारम् । "वर्णात्कारः" इति स्वार्थे कार त्यः । अनेन प्रकारेण । कमठवनुजः कमटचरासुरः । स्वापकारं स्वनकृतापकृतिम् । प्रमार्जन शालयन् । भूयः पुनः। आह स्म वीति स्म । ''अगस्तिपञ्च" इत्यादिना णश्प्रत्ययः । आहादेशश्च । देव भो सर्वज्ञ । जला हे सद्धर्मामृताम्भोद । प्रावृषा वर्षाभिः । “स्त्रियां प्रावुद स्त्रियां भूम्नि वर्षाः'' इत्यमरः । सम्भूतश्रोः प्राप्त शोभः । नषः नवीनः । घन इव मेघो यद्वन् तत् । प्रकटितमहाभोगभोनोरखपून: प्रकाशितो महाभोगों नागशरीर पस्य तथोकः । चा सी भोगीन्द्र श्री तेन गूटः संकृतः । लोकलामी जगत्सन्तोषकारी। धर्माम्बु वर्मामृतम् । वर्षन सिञ्चन । इष्ठान समीहितान् धेशाम् जनपदान् । विचर विहर श्रीविहारोघतो भवेत्यर्थः अत्र भोगीन्द्र गुरुत्वेन प्रावृतंजलदीपमा धर्माम्बुवपितन जलदसम्बुद्धिश्च निश्चीयते । लोक लादित्वम् इष्टदेशविहारश्च उभयत्र समावेव । अन्वयकमठदनुजः इत्यनारं स्वापकार प्रमार्जन भूयः आह स्म-'देव जलद प्राखूषा सम्भृतश्री नवः धनः इव धर्माम्बुवर्षन लोकालादी प्रकटितमहाभोगभोगीन्द्रगूढः इष्टान् देशान् विचर। अर्थ-कमठ के जीवधारी शम्बरासुर ने इस प्रकार अपने अपकार का प्रक्षालन करते हुए पुनः कहा--हे देव ! ( सद्धर्म रूपी अमृत के लिए) मेघ ( के समान ) वर्षा ऋतु के कारण समृद्ध शोभा से सम्पन्न होते हुए नए मेध के समान धर्मरूप जल की वर्षा करते हुए लोक को आलादित करने वाले, जिसने विस्तृत फणों के समूह का प्रकट किया है ऐसे धरणेन्द्र से शरीर को ढके हुए आप इष्ट देशों में विचरण करें । यत्तन्मौतयादबहुबिलासतं न्यायमुल्लध्य वाचां, तन्मे मिथ्या भवतु च मुने दुष्कृतं निन्दितस्वम् ।
SR No.090345
Book TitleParshvabhyudayam
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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