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________________ चतुर्थ सर्गः ३२३ बाश्यास्य उज्जीव्य । नः अस्माकम् । अनुकूलाम् अनुरूपाम् । भोगिभी भोगवती नागस्त्रीम् । प्राप्ता इति भाषः ॥ ५४ ।। अन्वय-उरग राट् सक्षेपात् भतु': स्तुति च कतु आरम-भगवन् ! भवति अल्पा अपि भक्सिा अनरूपं श्रेयः सूते । अतः प्रथमविरहे शोकदष्टां नः अनुकूलां एना सली भोगिनी आश्वास्य ते वयं श्रेयस्कामाः (सन्तः) इतः (प्राप्ताः) । अर्थ-नागराज ने संक्षेप में भगवान जिनेन्द्र की स्तुति करना आरम्भ किया--हे भगवन् । आपके विषय में थोड़ी भी भक्ति विपुल पुण्य को उत्पन्न करती है । अतःप्राथमिक विरह में शोक से अत्यन्त पीड़ित हमारी अनुकूल इस सखी नागिन पली को आश्वासन देकर बे ( जिनका शरीर जल गया था ) हम लोग कल्याण के अभिलाषी होकर यहां आये हैं। भावार्थ-धरणेन्द्र ने स्तुति की कि हे भगवन् ! पूर्वजन्म में कमठ के जीवधारी तापस के द्वारा जलाए जाने पर आपके द्वारा सम्बोधित होकर हम देवयोनि को प्राप्त हुए हैं। इस प्रकार थोड़ी भी भक्ति अधिक फल को देती है | हम लोगों का और भी अधिक कल्याण हो, ऐसी भावना से हम लोग पुनः आपके चरणों में नम्र होकर पूजा के लिए आये हैं । कमठ के जीवधारी तापस द्वारा जला देने पर नाग-नागिनी का पहले विरह हो गया था । अनन्तर देवगति में पुनर्मिलन हुआ। दोनों भगवान पार्श्व को यूजा करने के लिए आए । तमेवार्थ स्पष्टयतिसैषा सेवां त्वयि विवधति श्रेयसे में दुरापं, यन्माहात्म्यात्पदमधिगतं कान्तयामा मयेदम् । यस्माच्चैनं तदनुचरणेनाहमुमन्विहारं, तस्मादस्त्रिनयनवृषोरखासकटानिवृत्तः ॥ ५५ ॥ सेति । यामाहास्यात् यस्याः भक्तेः सामथ्र्यात् । कान्तयामा वनितया सह । 'अमा सह समीपे व' इत्यमरः । मया फणी शेन । दुरापं दुदु: खेन माप्यत इति दुरापं प्राप्तुमशक्यम् । इवं पबम् एतन्नागेन्द्र पदम् । 'पदं व्यत्रसितत्राणस्थानलक्ष्मानि वस्तुषु' इत्यमरः । अधिगतं प्राप्तम् । यस्माउच कारणात् । अहम् अहीशः । सवनुपरणेन तस्याः भमरनुकूलाचरणेन । एमं प्रकृतम् । विहारं लीलाविहरणम् । उपमन् स्यजन् । त्रिनयनकोस्वातकूटात् त्रिनयनस्य विमेवदिगीशस्य वृषेण वृषभेन 'सुकृते वृषभे वृषः इत्यमरः । उत्खाता भवतारिताः कूटाः शिखराणि यस्य तस्मात् । 'कूटोऽस्त्री शिखरं शम्" इत्यमरः । तस्मारनेः कैलासात् । निवृत्तः घ्यावृत्तो
SR No.090345
Book TitleParshvabhyudayam
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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