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पाश्र्वाभ्युदय
पष्टिरेव सहस्राणि ग्रन्थानां परिमाणतः । एलोकेनानुष्टुमेनात्र निर्दिष्टान्यनुपूर्वशः ॥ विभक्ति: प्रथम स्कन्धो द्वितीयः संक्रमोदयः । उपयोगच शेषास्तु तृतीयस्कन्ध इष्यते ॥ एकान्नषष्ठि समधिक सप्त शताब्देषु शकनरेन्द्रस्य । समतीतेषु लागलाय गाथासूत्राणि सूत्राणि पूणिसूत्र तु वार्तिकम् ॥ टीका वीरसेनीमा शेषा पद्धतिपचिका ॥ श्रीवीरसेनप्रभुभाषितार्थघटना निर्लोठितान्यागम । न्याया श्री जिनसेनसन्मुनिवरैरादेशितार्थस्थितिः ॥ टीका जयचिन्तोषला सूत्राचं संधोतिनी । स्पेयादारविषन्द्रमुज्ज्वलतमा श्रीपालसंपादिता ॥
जयघवला पु०५१९ जयला टीका संस्कृत मिश्रित प्राकृतभाषा में लिखी गई है। इसका सम्पादन मुनि श्रीपाल ने किया था।
धाविपुराण – आदिपुराण महापुराण का एक अंग है। महापुराण में ४७ पर्व हैं । इनमें से ४२ पर्व और तेतालीसवें पर्व के तीन लोक जिनसेन द्वारा रचे गए हैं। शेष पर्वो के श्लोक जिनसेन के शिष्य आचार्य गुणभद्र ने रखे हैं । आदिपुराण में महाकाव्य के लक्षण पूरी तरह घटित होते हैं। इसके साथ ही साथ यह एक पुराण भी है । अतः श्री मो० गौ० कोठारी इसे पुराण और महाकाव्य दोनों कहते हैं | आदिपुराण के काव्यश्व की प्रशंसा में उन्होंने लिखा ४ है -
Adipurana is a store of Apophthemas. It can be said that Adipuran is a Purana as well as Mahakavya, for almost all the characteristics of Mahakavya are found in it. It is full of sentiments and figures of speech. The language and the ideas conveyed by the Language of Adipurana are very pleasant. The flow of the Language is very smooth like that of water having no hindrance. The wonderful imaginative capacity is inherent in the author of the work. "
अर्थात् " आदिपुराण सूक्तियों का भण्डार है । आदिपुराण तथा महाकाव्य दोनों हैं, क्योंकि इसमें महाकाव्य के भो लक्षण पाए जाते हैं। यह कल्पनाओं ९४. पाम्मुदय- भूमिका पृ० ३२