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________________ चतुर्थ सर्ग गुरुदेवानामग्रुपातः क्षितौ यदि । देवभ्रंशो महादुःखं मरणं च भवेद् ध्रुवं' इति ।। ८।। अन्वय-मन्मयेन अस्मदल्ने न्हसि निहितां त्वत्सम्पर्क स्थिरपरिचयावाप्तये भाग्यमानां तां तां चेष्टां पश्यन्तीना स्थली देवतानां मुफ्तारथाला: अशुले शाः तरुकिराल में पु स्खलु बहुशः न पतन्ति ( इति ) न । अर्थ--काम के द्वारा हमारे शरीर में एकान्त में प्रस्थापित तथा तुम्हारे सम्पर्क से मिथर परित' की प्राप्ति में लिए की गई उस उस ( समस्त ) चेष्टा को देखती हई वनदेबियों की मोलियों के समान स्थल आँसुओं की बदें वृक्षों के पल्लवों में कई बार नहीं गिरती हैं, ऐसा नहीं है अर्थात् गिरती ही है। भावार्थ-वृक्षों के पल्लनों में अश्रुबिन्दु के गिरने से कामुकी का मरणाभाव सूचित होता है । अश्रुओं के पृथ्वी पर गिरने से मरणसूचित होता है। संक्षिप्येत क्षणमिव कथं दोघंयामा त्रियामा, प्राणाधीशे विधिविघटिते दूरवर्तिन्यभीष्ट । इत्यं कामाकुलितहृवया चिन्तयन्तो भवन्तम्, प्राणारखं श्वसिमि बहुशश्चक्रवाकीव तप्ता ॥३९॥ संक्षिप्येतति । विधिविटिसे विधिषियोजिते । अभीष्टे समोहिते । प्राणाधीयो प्राणनायके । वरवत्तिनि सति । दीर्घयामा दीर्घायामाः प्रहाः यस्याः मा बिरहवेवनया तथा प्रतोयमानेत्यर्थः । त्रियामा रात्रिः । त्रियामा क्षणवा क्षपा' इत्यमरः । आझुसरयोरयामयोदिनन्यवहारात्क्षपायास्त्रियामता । समिव क्षणकालपरिमाण मिव । कर्य फेन वा प्रकारेण । संमिप्येत लघुक्रियेत् । प्रत्यम् अनेन प्रकारेण । कामाकुलितहश्या कामेन आकुलितं भान्तं हृवयं चित्तं यस्याः सा । पक्रयाकोष प्पकवाकवानिलेव । तप्ता विरहदग्धा । प्ररणारक्षास्तम् असुपालकम् । भवन्त स्वाम् । चिन्तयन्सी स्मरन्ती सती । बहुशः बहुवारम् । अवसिमि उच्छ्वासं विदधामि ।।३९।। __ अन्यय-विषिविघटिते अभीष्टे प्राणाधीशे दूरवतिनी दीर्घयामा त्रिपामा क्षणं च कथं सक्षिप्येत ? इत्य कामाकुलितहृदया प्राणरक्ष भवन्तं चिन्तयन्ती तप्ता चक्रवाकी इन बहुशः स्वसिमि । ___ अर्थ-दैव से अलग किए गए अभीष्ट प्राणनाथ के दूरदेश में स्थित होने पर लम्बे पहरों वाली रात क्षणमात्र की तरह कैसे छोटी की जाय ? इस प्रकार काम से आकूलित हृदयवाली प्राणरक्षक आपका ध्यान करतो हुई विरहाग्नि से तप्त चकवी की तरह बार बार श्वाँस ले रही हूँ।
SR No.090345
Book TitleParshvabhyudayam
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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