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________________ २९८ पाश्वभ्युदय आनाय अङ्ग ते समुचितं कामाङ्ग इ सानुबन्धं सङ्गमं कान्तोवान्तात् सुहृदुपगमः सङ्गमात् किञ्चित् कनः । अर्थ - तुम्हारी कान्ता को समीपवर्ती स्त्रियों का सुनने योग्य गान, नेत्रों को सुन्दर लगने वाला दर्शनीय रूप पान करने के योग्य मुख की सुगन्ध, स्पर्शन करने और सूंघने के योग्य शरीर, तुम्हारा अत्यधिक योग्य कामोत्पत्ति का साधन है । यह गेवादि रूप निरन्तराय परस्पर में मिलन कान्ता के पास मित्रों के आगम रूप है जो कि साक्षात् मिलन से कुछ ही कम है। तात्पर्य यह है कि कान्ता के पास मित्रों के आगम स्वरूप यह जो. गेयादि का सुनना आदि है वह साक्षात् मिलन जैसा ही है । तस्माद्वासः किल दिव्यं ताम्बूलं च प्रणयमचिराद्योषितां मानयोच्चैः । व्यर्थक्लेशां विसृज विरसामार्यवृत्ति मुनीनां, तामायुष्मन्मम च वचनादात्मनश्वोपकर्तुम् ॥ २१ ॥ तस्मादिति । तस्मात् कारणात् । आर्य भी पूज्य | आयुष्मन् प्रशंसाय मनुः । है परोपकारश्लाध्य जीवन इत्यर्थः । मभवचनाच्च मे प्रार्थनायाश्व । अरमन स्वस्य । उपतु च परोपकारेणात्मानं कृतादिसुमपीत्यर्थः । उपकारक्रियायां प्रतिकर्मत्वेऽपि रोत्यादिवत् । सम्बन्धमात्रविवक्षायामात्मेति षष्ठीवचनं न विरुध्यते । क्लेशा निष्कला यासाम् fereet रसरहिताम् । स मुनिनां वृत्ति तद्यतिवर्तनम् । विसृज त्यज । किसलयमुकु पerest | वास वस्त्रम् । 'वस्त्र माच्छादनं वास: ' इत्यमरः । मुखस्वाणि वदनस्यायि । सुखें स्थाप्यते इत्येवं शीलम् । किम् अनर्धम् । ताम्बूलं वीटिकाम् । पोषितां स्त्रीणाम् । प्रणयं च प्रीतिमपि । अचिरात् शीघ्रण स्वं भवान् । उच्चैरधिकम् 1 मा 1 सम्भावय ।। २१ ॥ अन्वय-- आयुष्मन् ! मम वचनात् च आत्मनः उपकसु च तस्मात् योषित किसलयमृदु वासः मुखस्थायि दिव्यताम्बूलं प्रणयं च अचिरात् उच्चैः मामय, मुनीनां व्यर्थ क्लेशां तां विरसां आर्यवृत्ति विसूज | अर्थ - हे आयुष्मन् ! मेरे वचन के कारण तथा अपना उपकार करने के कारण ( कान्ता के समीप मित्रों के आगमन रूप साक्षात् समागम से कुछ कम होने के कारण ) स्त्रियों का किसलय के समान कोमल वस्त्र, मुख में सतत विद्यमान दिव्य ताम्बूल तथा प्रणय का शीघ्र ही अत्यधिक रूप से.
SR No.090345
Book TitleParshvabhyudayam
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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