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________________ चतुर्थ सर्ग सद्यः तदेव | कठयुतभुजलताग्रन्थि कण्ठाच्युतः स्रस्तो भुजलतयोग्रन्थिमन्त्री यस्य तथोक्तम् । गोपगूढं गाढालिङ्गनम् । “नपुंसके भावे क्तः ।" नमु निश्चयेन २८९ कुर्वन्ति ||८|| अन्वय - अङ्ग ! त्यं निमङ्गः । भुवि (ते ) भयस्य अगं न हि । वा जीवरमतक! अगनानां अङगसङ्गात् भवतः अपि भीः अस्ति किम् ? इमे योधमुख्याः युद्ध मति कृत्वा कष्ठच्युतभुजलताग्रन्थि गाढ़ोपगृहं सचः ननु विदति । अर्थ - अच्छा श्रीमान् जी तुम आसक्ति रहित हो । पृथ्वी में तुम्हारे भय का उपाय नहीं है । अथवा हे प्राणियों के द्वारा आदर को प्राप्त ! स्त्रियों के शरीर स्पर्श से भी क्या तुम्हें भय है ? ये श्रेष्ठवीर युद्ध में विजय प्राप्त करने का निर्णय कर अपनी प्रियाओं के ) कण्ठ में बाहु लता के बन्धन से युक्त श्रम हो रहे हैं। भावार्थ - युद्ध करने का निश्चय करने वाले श्रेष्ठ योद्धा युद्ध में मरणभय को छोड़कर भी स्त्रियों के आलिंगनादि से युक्त मानसिक भाव रूपी तरंगों में आसक्त रहते हैं। हे पार्श्व ! यदि आप मृत्यु को प्राप्त करते हैं तो मरणोत्तरकाल में सुन्दर स्त्रियों के आलिंगन की प्राप्ति अवश्य होगी, अतः मरणभय का परिहार हो गया। यदि आप ऐसा नहीं करते है तो निरासक्त होने पर भी आपको अङ्गनाओं के अद्धों के प्रति आसक्ति का भय है, इस प्रकार का दोष प्राप्त होगा। अतः आपको अवश्य ही युद्ध के लिए तैयार हो जाना चाहिए। लक्ष्मों क्षीणां स्वयपुषि सतोमुद्यमाख्येन दोषा, प्रोत्थाप्यालं भव युधि सतामाश्रितानुग्रहोर्थः । शंसन्तीव ननु नवधना धर्मसप्तशतां क्ष्मां प्रोस्थानां स्वजलकणिकाशीस लेनानिलेन ॥ ॥ लक्ष्मीमिति । स्वपुषि स्वशरीरे । सतौं विद्यमानां साध्वीं वा । कीगां कृशाम् । तां लक्ष्मीं श्रियम् । उद्यमाध्येत उद्यम एव आख्या यस्य तेन प्रयत्लायेन । बोबा भुजेन । "भुजबाहू प्रवेष्टो दो" इत्यमरः । प्रत्याप्य प्रबोध्य । पुधि युद्ध | "समित्या जिसमिवः" इत्यमरः । अलं समर्थः । भव तथाहि । सतां सत्पुरुषाणाम् । आश्रितामुग्रहः आश्रितजनरक्षणम् | अर्थः प्रयोजनम् । स्यादिति शेषः । " अथोभिधेयरैवस्तु प्रयोजननिवृत्तिषु" इत्यमरः । नवघनाः नवीन मेघाः । धर्मततक्ष धर्मेण तप्ता सा चासौ क्षता च ताम् । एन क्ष्मां तां भूमिम् । “धमाव निर्मेदिनी मही" इत्यमरः । स्वकणिकाशीसलेन स्वजलबिन्दु 1 १९
SR No.090345
Book TitleParshvabhyudayam
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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