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________________ चतुर्थ सर्ग २८७ अर्थ - जिस समय बोर गोष्ठियों में वीर विषयक कथायें होने पर मदयुक्त शत्रु से पुरुषों का मुख तिरस्कार के कल से चिह्नित हो उस समय हे मेघ ! अपने आपको विद्वान् मानने वाले आप ही कहिए, यदि अभिनान से उन्नत वित्त वाले ( घमण्डी ) लोगों की वह बीर लक्ष्मी निद्रासुख को प्राप्त हो। [ तो इसमें क्या आश्चर्य है ] । भावार्थ -- जो बीर वार्तालाप में तिरस्कृत हो जाय उसे युद्ध करके अपनी साम दिलाना चहिए। मैंने की है। मेरे साथ युद्ध करने के लिए तुम्हें तैयार हो जाना चाहिए । या से बुद्धिमंदुपचरिताद्विभ्यती लुप्तसज्ञा, मूकावस्था त्वयि विदधती रुन्धती सत्त्ववृत्तिम् । सावष्टम्भं भव भटतरो वार्धयुद्धेस्थिरः स अन्यास्यैनां नितत्रिमुखो याममा सहस्व ॥ ६ ॥ येति । ते तव । या बुद्धिः यज्ज्ञानम् मदुपचरितात् ममेववरणात् । कर्तरिक्तः । बिभ्यती भयमाप्नुवन्ती । लुप्तसमा नष्टचैतन्या । "सञ्जा स्याच्चेतना नाम हस्ताद्यैश्चार्य सूचने" त्यमरः । त्वयि भवति । मुकावस्थाम् अत्राददम् । "अवाचि मूकः" इत्यमरः । विषती विदधातीति तथोक्ता । शतृत्यः । "नुदुक्" इति ङी । सत्ववृति बलवद्वर्सनम् । रुन्धती आवारयन्ती । स्यादितिशेषः । एन बुद्धिम् । स्तनित विमुखः गर्जितपराङ्मुख सन् भयादकूजन्निति ध्वन्यते । याममा प्रहरमात्रम् | " यामप्रहरी सम" इत्यमरः । सहस्व क्षमस्व । प्रार्थनायां लोट् । याममात्रादेव युद्धपूर्तिर्भविष्यतीति भावः । अवा असा वा । स्थिरः सन् दृढो भवन् । ष्टम् अवष्टम्भेन सहवर्तनं यस्मिन्कर्मणि तत् । अन्धास्य स्थित्वा । भटतरः प्रकृष्टभेटः । भव रणभीरुर्माभूरित्यर्थः ॥ ६ ॥ अन्वय- मदुपचरितात् विभ्यती, लुप्तरांज्ञा त्वयि मूकायस्थां विदधती, सत्त्ववृत्ति रुवती या ते बुद्धि [ तां ] एनां सावष्टम्भ अन्वास्य स्तनितविमुखः अर्धशुद्ध स्थिरः सन् भटतरः भव, वा याममात्रं सहस्त्र | अर्थ- तुम्हारे समीप में मेरे आने से डरती हुई, नष्ट चेतना, तुम्हारी मौनावस्था को करती हुई प्राणों के व्यापार को रोकती हुई जो तुम्हारी बुद्धि है उस बुद्धि को धैर्य से त्यागकर गर्जना को छोड़कर संग्राम के मध्यवर्ती काल में निश्चल होते हुए उत्कृष्ट वीर होओ अथवा एक प्रहर - तक प्रतीक्षा करो।
SR No.090345
Book TitleParshvabhyudayam
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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