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________________ २४ पाश्वभ्युदय नदी का अवलम्बन लेकर विषय सुख का अनुभव करने के लिए अपने शरीर को बड़ा बनाने वाले मेघ का प्रस्थान जिस किसी प्रकार होगा, क्योंकि रस का अनुभव किया हुआ कौन पुरुष खुले हुए जघन वाली स्त्री का त्याग करने में समर्थ है शास्वत्युच्चैः पुलिनजयनादुच्चरत्यक्षिमाला, मास्काच्चीमधुररणितास काम सेवाप्रकम् तस्याः किञ्चित्करघुतमिव प्राप्तवानीरशाख हृत्वा नीलं सलिलवसनं मुक्तशेषोनितम्बम् ॥ पान २।२७ तामुत्कुरूळप्रततलतिकागूढपर्यन्तदेशां कामवस्थामिति बहुरलां दर्शयन्तीं निषद्य | प्रस्थानं ते कथमपि स लम्बमानस्य भाबि, शातावादी विवृत्तजघनों को विहातुं समर्थः । पाश्र्व० २१२८ दशपुर की ओर जाने पर मेघ वहाँ की वधुओंों के काम को जीतने वाले बाणों के समान दीर्घ नेत्रों का पात्र बनेगा, किन्तु अधिक समय न होने के कारण वह शीघ्र ही वहाँ से चल देगा | कैलाश पर्वत पर पहुंचने पर देवाङ्गनायें मेष को अवश्य ही फुहारा बना डालेंगी ।" हो सकता है कि नीचे तालाब के जल से भरे हुए चमड़े के पात्र के समान मेत्र को इधर उधर खींचती हुई देवाङ्गनायें क्रीड़ा करें | जिसे घाम लग रहा है ऐसे मेघ का मंदि उन देवाङ्गनाओं से यदि छुटकारा न हो तो क्रीड़ा में आसक्त होने वाली उनको मेघ कानों को कठोर लगने वाली गर्जनाओं से डरा दे । इस प्रकार पाश्वभ्युदय में जिनमें संयोग श्रृंगार की झलक मिलती है । अनेक ऐसे प्रसज्ञ हैं, पार्वायुदय में वियोग की व्यंजना मार्मिक ढंग से की गई है। मेव की स्त्री अपने प्रियतम के वियोग में निम्नलिखित कार्यों में से किसी एक कार्य में रत होगी क्योंकि प्रियतम के वियोग में स्त्रियों के कालयापन के प्रायः ये उपाय हैं ८३ १. देवपूजा में लगना | २. वस्त्रोक्त व्रतों का सेवन करना | ३. प्रियतम की प्रतिकृति बनाना । ८० पा० २४४ ८१. पा० २७७ ८२. वही २१७८ ८३. वही ३।३६-४१
SR No.090345
Book TitleParshvabhyudayam
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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