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________________ प्रस्तावना क्रीडाहेतोयदि छ भवतो गर्जनोत्सुकरवं, मन्दं मन्द स्तनय वनिता नूपुरारावहृतम् । तासामन्तभणितसुभगं सम्भृतासारधार, सोयोत्सर्गस्तनितमुखरो मा च भूविक्लवास्ताः ।। पा० २०२० जब मेघ बीच में आ जायगा सो सूर्य दिखाई नहीं देगा । जब तक प्रकाश दिखाई नहीं देता है, तब तक दुःख बिनाषा नहीं होता है। सूर्योदय के समय खण्डिता नायिका के आंसुओं का शमन उनके प्रेमो करेंगे, अतः मेष ! सूर्य के मार्ग को पीन छोड़ दे रुद्ध भानी नयनविषयं नोपयाति स्वयाऽसौ, भासो मङ्गादधनिरसनं मा स्म भूत्त्वग्निमित्तम् । तस्मिन्काले नयनसलिलं योषितां स्खण्डितामां, शान्ति नेयं प्रणयिभिरतो वम भानोरयजाश ।। पाश्र्वा० २०२३ मेष के बीच में आ जाने पर सूर्य का उसकी प्रिय कमलिनी से परिचय कक षायगा । अतः कमलिनी के कमल रूप मुख से हिम रूप आँसू हटाने के लिए सूर्य मेष से किरण रूप हाथ के रोके जाने पर अधिक ईर्ष्या वाला होगा, अतः मेष सूर्य और कमलिनी के बीच वाघा न बने, मयोंकि मित्र का कर्तव्य है कि मह दूसरे की विपत्ति में दुःखी हो अन्यमचान्यग्यसनविधुरेणाऽऽयमित्रेण भाव्यं सम्मा भानोः प्रियकमपिली संस्तवं त्वं निरुन्धाः । प्रालेयास्र कमलय दनात्सोऽपि हतु नलियाः प्रत्यावृत्तस्त्वयि करषि स्मादनल्पाभ्यसूयः ॥ पार्खा० २।२४ आगे जाकर मेघ गम्भीरा नदी के रस ( प्रेम, जल ) का पान करेगा। गम्भीरा नदी के प्रेम को वह किसी भी प्रकार नहीं ठुकरा सकता। ध्वनि करते हुए पक्षि समूह के रूप में तेज से स्फुरेण करती हुई करपनी की मधुर ध्वनि सुनकर तथा ऊँचे रेतीले तटरूप फदिमाग से युक्त गम्भीरा नदी को देखकर मेघ को पता चलेगा कि ( नदी रूप नामिका के ) मैथुन सेवन का उद्रेक क्या है ? कवि कोरर है फि तट रूप नितम्ब को छोड़ने वाले, बेत की शाखा तक पहुंचे हुए और हाथ से कुछ पकड़े गए के समान नीले जल रूप वस्त्र को हटाकर विपुल अनुराग से झुक्स काम की अवस्था को इस प्रकार प्रकट करती हुई, फूली हुई विस्तृत लताओं से जिसका पर्यन्त भाग ढका हुभा है ऐसी गम्भीरा ७८. पा. २२५ ७९. वही १२६
SR No.090345
Book TitleParshvabhyudayam
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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