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पावभ्युदय
मेघ सुम्दर स्त्रियों के चरणों के लाक्षाराग से चिह्नित विशाळापुरी के पनियों के भवनों में दहकर मार्ग की थकान को दूर कर सकता है।' जिनालय में वैश्यायें मेघ से नवक्षतों को सुख देने वाले वर्षा के प्रथम बिन्दुओं
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कलकल
को पाती है ।" मद में उसकी गर्जना से हरकर स्तनों को कपाली हुई ये उसके ऊपर भ्रमरों की पंक्तियों के समान दोघं कटाक्षों को छोड़ती हैं। महाकाल वन के कलकल मिनालय में मेघ की सन्ध्याकालीन क्रियाओं को करने के बाद नगरी में रात्रिकालीन सम्भोग के लिए प्रियतम के निवास स्थान को जाने वाली देखते हुए भागे के मार्ग में गमन करने की
स्त्रियों की श्रृङ्गार लीलाओं को सलाह दी गई है।
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मेघ अम आकाशमार्ग को आच्छादित कर देगा और सड़क पर अत्यन्त अन्धकार हो जायगा उस समय पुरुष को पाने के लिए उत्कण्ठित मदन विवशा स्त्रियां सम्भोग कोड़ा के लिए सख्त स्थान पर जाने में समर्थ नहीं हो पायेंगी । अतः मंच से कहा गया है कि हे मेघ ! एक तो तुम ऊँचे स्वर से गरजना नहीं और दूसरे बिजली से उन स्त्रियों को मार्ग दिखा देना । * यदि मेष गरजने को ही उत्सुक है तो उसे चाहिए कि स्त्रियों के नूपुरों की ध्वनि के समान हृदयहारी, उन स्त्रियों की रतिक्रीड़ा के समय उच्चरित अमझरी ध्वनि विशेष के समान मनोहर मन्द मन्व गर्जना करे । धाराप्रवाह जल वृष्टि मौर गर्जना से शब्दशील नहीं बने; क्योंकि ये स्त्रिय! डरपोक होती हैं ।
७१. हम्र्म्येष्वस्याः कुसुम सुरभिष्वष्वखिन्नान्तरात्मा ।
मीत्वा खेद ललितमितापादरागाद्धितेषु || पाश्च० १।११८
७४. बद्दी २।११
७५. वही २।१२
७६. पा० २।१७
७७. गणेत्युच्चैर्भवसि पिहितव्योममार्गे रमण्यो, गाठोत्कण्ठा मदनविवशाः पुंसु सङ्केतगोष्ठीम् । एकाकिन्यः कथमिव रसो गन्तुमीशा निशी, रुवालोके नरपतिपथे सूचिभेदस्तमोभिः || पा० २०१० तस्मान्नोमिषु च भवाऽऽडम्बरं संड्राशु, प्रत्यूहानां करणमसतामायूस नोन्नतानां । कर्तव्या से सुजन विधुरे प्रत्युतोपक्रियाऽऽसां
सौदामन्या कनकनिकवस्मिन्धया वर्शयोर्वीम् ॥ पापव० २०१९