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________________ -२२२ पाश्र्वाभ्युदय गत्यायासाद्गलितकबरीबन्धमुक्तः सभी, कोणः पुष्पैः कुसुमधनुषो बाणपातायमानैः । लाक्षारानी चरणनिहितरयषिमा बस्या, नैशो मार्गः सवितुरुदये सूच्यते कामिनीनाम् ॥९६ ॥ गत्यामासादिति । यस्याम् अलकायाम् । सवितुः सूर्यस्य । उवये उद्गमे सति । अधिक्षोणि शोणिमधिकृत्याधिक्षोणि तस्मिन् भूतले । कामिमीनाम् स्वीणाम् । गत्यायासात् गमनाज्जातश्रमात् । गलितकारोबन्धमुक्तः गलितात शिथिलात् कबरीबन्धात् केवामन्यात् मुक्तानि च्युतानि तः । 'कवरी केशवेशे' इत्यमरः । सभृङ्गः भृङ्गसहितः । कुसुमधनुषः कुसुमान्येव धनुर्यस्य तस्य कामस्य | बाणपाताअमानः धारपातसदृशैः । कीर्णैः आस्तीर्णः । पुष्पैः कुसुमैः । परनिहितः पादविलिप्तः । लाक्षारागैश्च लाक्षारजनैरपि । 'लाक्षाराक्षाजतुक्लीय भावोऽलक्तो द्रुमादयः' इत्यमरः । नेशः निशि भवो नेशः । मार्गः पन्थाः । सूच्यते ज्ञाप्यते । मार्गपसित मन्दारकुगुमादिलिङ्गरयमभिसारिकाणां पन्था इत्यनुमीयत इति भावः ।। ९६ ॥ अग्षय-तस्यां गत्यायासात् गलित कबरीवन्धमुस्तैः कीर्णैः सभृङ्गः कुसुमधनुषः बाणनातायमानः पुष्पैः अधिक्षोणि चरणनिहितः लाक्षारागैः अपि कामिनीनां नशः मार्गः सवितुः उदये सूच्यते । अर्थ-जिस अलका नगरी में गमन से उत्पन्न परिश्रम के कारण शिथिल केशवेश की रचना से गिरे हुए, भौरों से सहित, गिरते हुए काम के बाण के समान फूलों से तथा पृथ्वी पर पैर रखने से अंकित महावर के रंग से कामिनी स्त्रियों का रात्रिकालीन मार्ग सूर्योदय होने पर सूचित होता है। भावार्थ-कामिनियों के गमनजन्य परिश्रम के कारण उनका कबरीबन्ध शिथिल हो जाने से उनसे गिरे हुए फूल मार्ग पर गिर पड़े थे। फूलों के साथ उन पर बैठे हुए भौंरे भी गिर पड़े थे। वे गिरे हुए फूल ऐसे लग रहे थे जैसे गिरते हुए काम को बाण हो । जहाँ जहाँ स्त्रियों ने पैर रखे थे वहाँ उसके महावर का रंग अंकित हो गया था। इन सब कारणों से सूर्योदय के समय स्त्रियों का रात्रिकालीन मार्ग सूचित हो रहा था । मन्ये यस्या जति सकले प्यास्ति नौपम्यमन्यस्सवौंपम्यप्रणिहितधिया वेधसा निर्मितायाः।
SR No.090345
Book TitleParshvabhyudayam
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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