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________________ २१८ पार्श्वभ्युदय अन्यय-यस्या गौरीभतु': विरचितजटामोलिभाजः अनतिपरतः इन्दोः नालिसान्दं पतन्तः अमला; सन्तुजालावलम्बाः मयूखाः दम्पतीनां सुरतजनिता अङ्गग्लानि सद्यः विलयं नेतु शक्नुयुः ।। अर्थ-जिस अलकानगरी में जो निशा का नाथ है, जो विशेष रूप से रचित जटा के समान मुकुट को धारण किए हुए है अथवा वृक्षों को शास्ताओं के आकार नाले बिलों का मुहर को धारण किये हुए है तथा जो अपने मार्ग का अतिक्रमण नहीं करता है अथवा बहुत शीघ्र नहीं जाता है ऐसे चन्द्रमा की अत्यधिक धनी न पड़ती हुई निर्मल तन्तु समूह से विरचित आगमन द्वार से प्रवेश करती हुई किरणें दम्पसियों के सम्भोग. जनित शारीरिक थकान को शीघ्न ही नष्ट करने में समर्थ होंगी । एकाकिन्यो मदनविवशा नीलवासोऽवगुण्ठाः, प्राप्ताकल्पा रमणवसत्तीर्यातुकामास्तरुण्यः । यत्रापास्ते तमसि विपणीराश्रयन्त्युत्पथेभ्यस्त्वत्संरोधापगमविशदेरिन्युपानिशीथे ॥९१ ॥ एकाकिन्य इति । यत्र पक्षधामनि । निशीथे अर्द्धरात्रे। 'अर्धरात्रनिशीथों हो द्वौ यामप्रहरी' इत्यमरः । स्वरसंरोधापगमविशदैः । सरसरोषस्य मेघावरणस्यापमेन विशनिमल: इन्दुपायैः चन्द्ररश्मिभिः । 'पादा सम्पडि धतुर्याश' इत्यमरः । तमसि तिमिरे । 'तमिस्र तिमिरं तमः' इत्यमरः । अपारते निराकसे । एकाकिन्यः असहायाः । मदनविवा: मन्मथववागताः नीलवासोश्वगुण्ठाः नील सोभिः वस्त्ररवगुण्टा अन्तहिताः । 'बस्त्रमाच्छादनं वासः' इत्यमरः । प्राप्ताकल्पाः लब्धभण्डनाः । 'आकल्पवेषौ नेपथ्यम्' इत्यमरः । रमणधसतीः प्रियावासान् पातुकामाः गन्सुकामाः । तवण्यः युवत्तमः। 'तरुणी युवतिसमे' इत्यमरः । उत्पथेन्या उद्गतमार्गेभ्यः। विपणीः पण्यः वीथिकाः । 'विणिः पण्यवीथिका' इत्यमरः ।। माश्रयन्ति प्राप्नुवन्ति ।। ९१ ।। अन्वय-यत्र निशीथे स्वत्सरोषापगमविशदः इन्दुपादः तमसि अपास्ते एकाकिन्यः मदनविवक्षा: मीलमासोवगुण्ठाः प्राप्ताकल्पाः रमणवसतीः पातुकामः तरुण्यः उत्पश्रेभ्यः विपणीः आश्रयन्ति । ___ अर्थ-जिस अलका नगरी में आधी रात के समय तुम्हारे द्वारा कोई प्रतिबन्ध न रहने से निर्मल चन्द्रमा की किरणों से अन्धकार के दूर हो जाने पर अकेली, काम से विवश, नीलवस्त्र से शरीर को ढके हए और आभूषणों को पहिने हुए प्रियतम के निवासस्थान को जाने की इच्छुक
SR No.090345
Book TitleParshvabhyudayam
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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