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दो शब्द
भाचार्य जिनसेन ने संस्कृत के महाकवि कालिदास द्वारा रचित काव्य मेघदूत के श्लोकों के प्रत्येक चरण की और कहीं कहीं दो चरणों की समस्यापूर्ति के फलस्वरूप ३६४ श्लोकों में 'पास्वविय' की रचना की है। पार्श्वभ्युदय संस्कृत साहित्य की एक उत्कृष्ट रचना है। इसमें जैनधर्म के तेईसवें तीर्थंकर भगवान् पार्श्वनाथ की तपस्या के काल में अनेक पूर्व सर्वो के खेरी कमठ के जीव शम्बरासुर के द्वारा किये गये उपसर्ग को आधार बनाकर का का प्रारम्भ किया गया है । यद्यपि इसमें जैनधर्म या अंमदर्शन के किसी विशिष्ट सिद्धान्त का प्रतिपादन दृष्टिगोचर नहीं होता है तथापि संस्कृत साहित्य की दृष्टि से यह एक महत्त्वपूर्ण रचना है |
मेघवृत श्रृंगाररस प्रधान काव्य है । यतः पाश्वभ्युदय मेघदूत के श्लोकों को आधार बना कर लिखा गया एक समस्यापूर्त्यत्मक काव्य ग्रन्थ है अतः उसमें मेवदूत की तरह ही शृंगाररस के दोनों पक्षों ( संयोग और वियोग श्रृंगार ) का होना स्वाभाविक है। इससे एक बात ज्ञात होती है कि जहाँ जैनाचार्य बोर रस या शान्तरस विषयक रचना कर सकते है वहीं वे शृंगाररस विषयक रचना करने मैं भी पूर्ण समर्थ हैं, फिर भी किसी तीर्थंकर की कथा में
'ज्ञाता स्वादो विवृत जननां को विहातुं समर्थः '
जैसे कथन पाठक के मन पर क्या प्रभाव डालेंगे, यह कहना कठिन है ।
श्री डॉ० रमेशचन्द्र जैन संस्कृत साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान् हैं । वे जैनदर्शन, alaria आदि विषयों के भी अच्छे शाता है । वे अनेक पुस्तकों के सफल लेखक, सम्पादक तथा अनुवादक भी हैं। उन्होंने श्री योगिराट् पण्डिताचार्य की संस्कृत टोका सहित पायुक्ष्य का सम्पादन तथा उसके क्लोकों का अर्थ औौर संक्षिप्त व्याख्या लिखी है। इससे संस्कृत विद्वानों को लाभ तो मिलेगा ही, साथ ही साधारण जन भी पार्षाभ्युदय काव्य के काव्यत्व का आनन्द के सकेंगे। उनके द्वारा लिखित प्रस्तावना भी उपयोगी एवं पठनीय है।
प्रसन्नता की बात यह है कि ऐसी उत्कृष्ट कृति का प्रकाशन हो रहा है । इस कृति के सम्पादक और सार्थ व्याक्या लेखक तथा प्रकाशक बधाई के पात्र हैं ।
उदयचन्द्र जैन.
वाराणसी
१५ अगस्त १९९१