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प्रस्तावना
सत्स्वावीथः सुरभि शिशिरं प्रार्थनीयं मुनीनां, निर्जन्तुत्वानुपलनिपतन्निराम्भः प्रकाशम् । तस्याः शुणं धनकरिकरघट्टने रम्यमत्र, जम्बूकुब्जप्रतिहतरयं तोयमादाथ गच्छे | पाइ० १२७६
देशान्तर में गमन करने वालों की स्त्रियों अर्धविकसित किंजल्कों से हरे और कृष्णलोहित वर्ण से युक्त स्थलकवम्ब पुष्प को देखकर मेघ को समीपता का अनुमान करती हैं अतः स्वयं प्रत्यक्ष से निश्चित कार्यरूप हेतु से कारण का अनुमान होता है, इस प्रकार का मत अधिक उपयुक्त है, मैं ऐसा मानता हूँकार्यालङ्गात् स्वयमधिगतात कारणस्याऽनुमानं भिमा युक्तरूपेति मन्ये । यमनुनिमते योषितः प्रोषितानां,
येषां
त्वत्सा नि
मीपं वृष्ट्वा हरितापिर्श केसरेरक । पा० १८१ हे मेघ | जहाँ वन में उत्पन्न शिलीन्ध्रपुष्पों को और जलप्राय प्रदेश में तुम्हारे जलबिन्दु गिरने में जिनमें कलियाँ पहले पहले प्रकट हुई है ऐसी भूकदलो को देखकर वे पर्वतीय मनुष्य तुम्हारे आगमन की जानकारी में समर्थ होते हैं । उस विन्ध्यपवंस के मध्य में स्थित बमभूमि को तुम्हें जाना चाहिए
मध्येविध्यं वनभुवमिया यत्र दृष्ट्वा शिलन्छन्, अध्याननुवनमभी पर्वतीया मनुष्याः । स्वामायातं कलवितुमल स्वत्पयो विन्दुपात:
आविभूत प्रथमुकुलाः कन्दली स्वानुच्छम् । पा० ११८२
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२. आलंकारिक आलम्बन रूप - यह वह रूप है, जिसमें प्रकृति को आलम्बन तो बनाया गया है, किन्तु उसका वर्णन आलंकारिक रूप में करते हुए उसे अन्य किसी अप्रस्तुत रूप में भी देखा गया है। पाश्वभ्युदय में प्रकृतिचित्रण का यह रूप अधिकता से मिलता है और इस रूप में यहाँ प्रकृति का चित्रण बहुत हो सजीव एवं सरस रूप में किया गया है। तेल से मादिकृत केशबन्ध के समान वर्णवाला मेघ जब आम्रकूट पर्वत के शिखर पर चढ़ता है तो आम्रकूट पर्वत स्था अपने शरीर को मण्डलाकार परिणमित करने वाला काला सर्प इस पर्वत के मध्य में बैठा है अथवा यह पर्वत का नीलकमल से बनाया गया शेखर है ? इस प्रकार की आशंका को भोली भाली विद्याधरियों के सामने उत्पन्न करता है
कृष्णाहिः किं वलयिततनुमध्यमस्यातिशेते,
कि वा नीलोत्पलविरचितं शेखरं भूभूतः स्यात् ।
इत्याशङ्कां जनयति पुरा मुग्धविद्याधरीणां त्वय्यारूडे शिखरमचलः स्निग्धवेणीसवर्णे ॥ पाव० १२७०