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________________ द्वितीय सर्ग प्रिय सुहत् इव प्रत्युद्यासुः स्वत्वसमच्छेदपक्षः आरूढ सौगन्ध्ययोगः काननोतुम्नराणां परिणमयिसा शीतः वातः नीचः बास्यति । ___ अर्थ--कुछ दूर जाकर देवगिरि को जाने के इच्छुक, श्रम से युक्त तुम्हारे प्रिय मित्र के समान प्रयत्न करता हुआ तुम्हारी थकान को नष्ट करने में दक्ष, जिसका सुगन्धि के साथ सम्बन्ध समुत्पन्न हुआ है तथा जो. जंगल के गूलरों को पकाने वाला है, ऐसा शीतल वायु धीरे-धीरे बहेगा। ईशोमाभ्यामपचितपदं तं पुपुत्रीयिषुभ्यां, पूजा जैनी विरिरचयिषु स्वौकसि प्राज्यभक्त्या । तत्र स्कन्दं नियतवसति पुष्पमेघीकतारमा, पुष्पासारैः स्नपयतु भवान्थ्योमगङ्गाजलानः ॥३१॥ इशोमाम्मामिति । तत्र देवीगिरी स्वीकास स्वाश्रये । 'औकः समाश्रयः' इत्यमरः। नियतवसति नियता निीता वसतिः स्पिप्तिर्यस्य तम् । तमेष । पुपुत्रीयिषम्या पुत्र कतुंम् पुत्रयितु वा इच्छू पुपुत्रोयिष ताभ्याम् । ईशोमाभ्याम् अष्टदिषपतित-पत्नयाम पावसोया ! 'हामरोशः पतिः ।' मा कास्यायनी गौरी' इत्युभयत्राप्यमरः । अपवितवम् अपचिते अघिते पदे चरणे यस्य सम् । 'स्या दहिते नमस्थितनमसितमपचायिताचि तापचितम्' इत्यमरः । अनीम अर्हत्सम्बन्धिनीम् । पूजा अर्चनाम् । प्राज्यभक्रया भजनं भक्तिः प्राज्या चासो भक्तिश्च तया । बिरिरचयिषु विरचयितुमिच्छु: विरिरचयिषुः तं कर्तु मिश्छुस् । स्कन्वं स्कन्दाभिषानं कचिदेवविशेषम् । भवान् स्वम् । योमगङ्गाजलाई आकाशगङ्गानद्याः जलेना:। पुष्पासार: कुसुमसम्पातः । 'धारासम्पात आसारः' इश्यमरः । पुष्पमेधोकतारमा पुष्पाणां मेषस्तथोक्त: पुष्षमेघोकृतः आत्मा स्वरूपं यस्य तथोक्तः सन् । स्नपपतु अभिषिचतु ।।३१।। __ अन्वयः-- पुपुत्रीयिषुम्यां ईशोमाभ्या अपचितपदं स्वीकसि प्राज्यभक्त्या जनी पूजां विरिरीय तत्र नियतवसति स्कन्द पुष्पमेधीकताल्मा भवान् व्योमगङ्गाजलाने: पुष्पासारैः स्नायतु ।। अर्थ-( स्कन्ददेव को ) अपना पुत्र बनाने की इच्छा वाले ईश ( उत्तर पूर्व दिशा के पति ) तथा उसकी स्त्री उमा के द्वारा जिसके चरणों की पूजा की गई है, अपने भवन में अत्यधिक भक्ति से जो जैनी पूजा को करने का इत्रछुक है तथा देवगिरि पर जिसका निश्चित निवास है। ऐसे स्कन्ददेव पर फूलों की वृष्टि करने वाले मेघ के समान शरीर को धारण करते हुए आकाशगङ्गा के जल से भीगे हुए फूलों की वृष्टि से अभिषेक करें।
SR No.090345
Book TitleParshvabhyudayam
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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