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द्वितोय सर्ग अर्थ--आपके द्वारा सूर्य रुद्ध हो जाने पर यह ( सूर्य ) नेत्रों के विषय को प्राप्त नहीं होता है अर्थात आँखों से दिखाई नहीं पड़ता है। आपके कारण प्रकाश का विनाश हो जाने से दुःख का विनाश नहीं होगा ! उस समय अर्थात् सूर्य दर्शन के समय खण्डिता स्त्रियों के नेत्रों का जल प्रणयी व्यक्तियों के द्वारा शान्ति को प्रा ..या जाना हए । दूध के मार्ग को शीन ही छोड़ दो।
व्याख्या-जब मेघ बीच में आ जायगा तो सूर्य दिखाई नहीं देगा। जब तक प्रकाश दिखाई नहीं देता है, तब नका खण्डिता नायिकाओं का दु:ख विनाश नहीं हाता है। सूर्योदय के समय खण्डितानायिका के आँसुओं का शमन उनके प्रेमी करेंगे। अतः है मेघ ! तुम सूर्य के मार्ग को शीघ्र छोड़ दो।
भासो भङ्गात् के स्थान पर मामो भङ्गात् पाठ मानने पर अर्थ इस प्रकार होगा-हे मेघ ! आपके द्वारा सूर्य तिरोहित होने पर यह । सूर्य ) लोगों को दृष्टिगोचर नहीं होता है । मास के पूर्ण न होने से तुम्हारे कारण दुःस्व का निवारण न हो अर्थात् सूर्य जब दिखाई नहीं देगा तो दिवस की गणना का अभाव होगा । दिन की गणना के अभाव में माह की समाप्ति के ज्ञान का अभाव होगा । इस अभाव के कारण कान्ता के एक वर्ष प्रमाण विरह दुःख का निवारण होगा, किन्तु यह तुम्हारे द्वारा न होकर मास पूरा होने पर ही हो । सूर्योदय के समय खण्डिता नायिका के आँसुओं का शमन उनके प्रेमी करेंगे, अतः हे मेघ ! तुम सूर्य के मार्ग का शीघ्र ही छोड़ देना । खण्डिता नायिका का लक्षण माहित्यदर्पणकार ने इस प्रकार दिया हैपार्श्वमेति प्रियो यस्या अन्यसम्भोगचिह्नितः ।
सा खण्डितेति कथिता धीररीकिषायिता ।। ३।७५ ।। अन्य स्त्री के संमर्ग-चिह्नों से युक्त नायक जिसके पास जाय वह ईर्या से कलुषित स्त्री खण्डिता कहलाती है।
अन्यच्चान्यव्यसनविधुरेणाऽऽर्य मित्रेण भाव्यं, तन्मा भानोः प्रियकमलिनी संस्तव त्वं निरुन्धाः । प्रालेयास्त्र कमलयवनात्सोपि हतु नलिन्याः, प्रायवृत्तस्त्वयि करधि स्यादनल्पाभ्यसूयः ।। २४ ॥ अन्यच्चति । अन्यन्त्र तन्मार्गरांधे दूषणान्तरमित्यर्थः । आर्य भी पूज्य । मित्रेण 'भानुना । सुहृदा वा । 'सुहृदावित्यशास्त्रग्रन्ध निर्देशेषु मित्र' इति नानाथरत्नमाला