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________________ द्वितीय सर्ग १६१ अर्थ-जिसने आकाशमार्ग को आच्छादिन कर दिया है ऐसे तुम्हारे द्वारा ऊँचे स्वर से गर्जना करने पर रात्रि में राजमार्ग पर अत्यन्त गहन अन्धकार के द्वारा प्रकाश के रोके जाने पर पुरुषों के विषय में जिन्हें तीन उत्कण्ठा उत्पन्न हो गई है ऐसी काम से शिवािँ सम्भोग कीड़ा के लिए सङ्केत स्थान पर अकेली जाने में कैसे समर्थ होंगी? अर्थात् समर्थ नहीं होंगी। तस्मान्नोच्चे+निषु च भवाडम्बरं संहराशु, प्रत्यूहाना करणमसतामादृतं नोन्नतानाम् । कर्त्तव्या ते सुजनविधुरे प्रत्युतो पक्रिया सा, सोदामन्या कनकनिकस्निग्धया वयोवीम् ॥ १९ ॥ तस्मादिति । तस्मात् कारणात् । ध्वनिषु गजितेषु । उम्पैः महान् । न भव त्वं मा भूः । आजम्बरं गजितम् । 'आडम्बरोऽस्त्रीसंरम्भे गजित तूर्वनिस्वने' इति भास्करः । आशु शीघ्रण । संहर निवर्तय । असतां दुर्जनानाम् । प्रस्मूहानां विघ्नानाम् । "बिघ्नोन्तरायः प्रत्यूहः' इत्यमरः । फरक विधानम् । श्रावृतं प्रियं भवति आदृत सादराचितम्' इत्यमरः । उन्नताना सज्जनानां न मावृतं न भवति प्रत्युत कि तहि । सुजन भी सज्जन । थासां वनितानाम् । विधुरे विपदि । उपक्रिया उपकृतिः । ते तव । कर्तण्या विधया। 'चा नाकस्य' इति वा षष्ठी । त्वरण विधातव्येत्यर्थः। कनकनिकषस्निग्घया कमकस्य निकषो निष्यत इति व्युत्पत्त्या निकषोपलगतरेखा तस्येव स्निग्धं तेजो यस्यास्तया । "वियु स्निग्धं तु मसूर्ण सान्द्रे क्लीड तु तेजसि' इति शब्दार्णवे । सौदामाया सुदाम्नोऽद्रिणः एकदिक सौदामनी विद्युत् 'एकदिशा' इत्यण् । तया उवा मागंभुन्नम् । वर्शय प्रकाशय ।। ११ ।।। अन्धध-तस्मात् ध्वनि उच्च न भव, आडम्बरं च आशु संहर । प्रत्यूहानां करणं अमतं आदृतं न उन्नतानां । प्रत्युत (हे ) सुजन बासा विधुरे उपकिया त कर्तव्या । कनकनिकषस्निग्धया सौदामित्या उनी दर्शय । अर्थ-अतः ध्वनि उच्चारण के विषय में ऊंचे न होओ अर्थात् मन्द स्वर से गर्जना करो । विघ्नों का करना दुर्जनों को प्रिय है, उन्नतों (ऊँचे) या महान् व्यक्तियों को नहीं । बल्कि हे सज्जन ! इन स्त्रियों की आपत्ति के समय तुम्हें उपकार करना चाहिए । सोना जाँचने की कसौटी की रेखा के समान तेज वाली बिजली से भूमि ( मार्ग ) दिखलाओ। क्रीडाहेतोर्यदि च भवतो गर्जनेनोत्सुकत्वं, मन्दमन्दं स्तनय वनितानूपुरारावहृद्यम् ।
SR No.090345
Book TitleParshvabhyudayam
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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