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________________ पार्वाभ्युदय करणविगम के अनन्सर सिद्ध क्षेत्र की स्थापना करते हैं । उपर्युक्त करणविमम शब्द का अर्थ प्रायः सभी टीकाकारों ने शरीर त्याग किया है। आचार्य हजारी साय द्विवेदी में इसकी 3ई माया का है । उनके अनुसार करणविगम का सोपा सादा अर्थ है-इन्द्रियों को उल्टी दिशा में मोलना, अर्थात् इन्द्रियों को बाहरी विषयों की ओर से मोड़कर अन्तर्मुखी करना ।५० पावाम्युल्य में पार्श्व भी करणविगम की इस प्रक्रिया में लगे हुए है। पाभ्युिदय में प्रकृति पार्वाभ्युदय मानों एक दृष्टि से प्रकृति काव्य ही है। इसमें प्रकृति के ही एक रूप मेघ को दूत बनाया गया है और उसका जो मार्ग बतलाया गया है, वह भी मतः स्वाभाविक रूप से प्राकृतिक प्रदेशों में होकर जाता है, अतः इसमें स्वत: प्रकृति चित्रण को महत्वपूर्ण स्थान मिला है। मेघमार्ग में पड़ने वाले स्थलों की यथातथ्य प्राकृतिक दशाओं का वर्णन किया गया है, जिससे कवि का ऐसा प्रकृति सम्बन्धी सूक्ष्म निरीक्षण प्रकट होता है कि उसने स्वयं आकर इन स्थलों एवं उनकी प्राकृतिक दशाओं को ध्यान से देखा है। भूताचल पर्वत का तल भाग पत्थरों से ऊंचा-नीचा था। उसके प्रदेश दावाग्नि से दग्ध है, वहाँ वृक्ष शुष्क होने के कारण उपभोग के योग्य नहीं है। मालक्षेत्र र कृषि प्रधान है। आम्नकूट पर्वत के ऊंचे शिखर पर विद्याधारिया बैठा करती है। उसके शिखर सुन्दर तथा सिखों के द्वारा सेवन करने योग्य है । वही फूली हुई लताओं और गुरुमों की वृद्धि के योग्य स्थान हैं। उसका समीपवर्ती भाग पके हुए आमों से तुका हुआ है। आम्रकूट पर्वत पर जब मेष बैठता है तो भोली भाली विद्याघारियों को इस बात का सन्देह हो जाता है कि क्या कुण्डली मारे हुए सर्प पर्वत पर बैठा है अथवा पर्वत पर नीलकमल से बनाया गया शेखर सुशोभित हो रहा है। नर्मदा का जल जंगली हाथियों की सूड़ों के प्रताओं से निरन्तर मदित, ३९. यस्मिन्दष्टे करण विगमादूर्ध्वमुधूतपापाः, सिद्धक्षेत्रं विदधति पर्व भक्तिभाजस्तमेनम् । दृष्ट्वा पूसस्त्वमपि भवता? पुनर्दूरतोऽमु, कल्पिष्यन्ते स्थिरगणपदप्राप्तये श्रद्दधानाः ।। पा ० रा६६ ४०. कालिदास की लालित्य योजना, पु०१०७ ४१. जिनसेन : पाश्र्वाभ्युदय ११५ ४२. वही ११६३ ४३. वही श६९ ४४. बही ११७०
SR No.090345
Book TitleParshvabhyudayam
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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