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पाश्वभ्युदय
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भक्तिमिति । शतमत व देवेन्द्र इव । श्राविर्भवदिष्यरूपः दिवि भवं दिव्यं तच्च तत् रूपं च तथोक्तम् आविर्भवतीति प्राधिर्भवत् दिव्यरूपं यस्य सः तथोक्तः । भक्त गुणानुरागम् । कुन् । स्वरसरथितां स्वसामर्थ्यंकृताम् । शृङ्गारादी विषे बीमें गुणे रागे द्रवे रसः' इत्यमरः । चित्रां नानारत्नविशिष्टाम् । सि वर्तनम् । वा अथवा | शैखिनों शिखिनो मयूरस्येयं शेखिनी ताम् । मनोशां मनोहराम् । कण्ठच्छायां ग्रीशचुतिम् । केवलनीकान्तिमित्यर्थः । वपुषि निजशरीरे । वहन् श्ररन् 1 साधुवादं प्रेक्षकजनश्लाघनोक्तिम् । 'जनोदाहरणं कीर्ति साधुवादं यशो विदु:' इति धनन्जयः । मास्मयन् अकुत्सयन् । पशुपतेः ईशानदिक्पतेः रुद्रस्य नृतारम्भे जिनेन्द्रदर्शनान्तरकृते आनन्दनर्तनप्रारम्भे । आर्द्रभागाजिनेच्छाम् आर्द्रा शोणिताद यन्नागाजिनं गजवमं । 'अजिनं चर्मकृत्तिः स्त्रीः इत्यमरः । तत्रेच्छां काङ्क्षाम् । हर व्या . भवेति तात्पर्यम् ।। १५ ।।
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अन्वय- शतमखः इव पशुपतेः भक्ति कुर्वन् आविर्भवद्दिव्यरूपः स्वरस रचितां दिव्यां वृत्ति मनोशां शेखिनीं कण्ठच्छायो वा स्ववपुषि वहन् नृत्तारम्भ साधुवाद यन् आनागाजिनेच्छामा स्म हर अथवा शतमत इव आविर्भवदिव्यरूरः भक्ति कुर्वन् स्वरस रचितां चित्रां वृत्ति वा दखिनों मनोशां कण्ठच्छायां स्वयपुषि बहुन् भास्मयन् पशुपतेः नृतारम्भे भाद्रंनागाजिनेाम् हर ।
अर्थ -- सौधर्मेन्द्र के समान मृग आदि प्राणियों के रक्षक भगवान् जिनेन्द्र की भक्ति करते हुए, दिव्य रूप को प्रकट कर अपनी इच्छा से रची गई दिव्य अवस्था अथवा मनोज मयूर के कण्ठ की कान्ति को अपने शरीर में धारण करते हुए नृत्य के आरम्भ में प्रशंसा को प्राप्त कर अपनी नए नागकेसर के फूलों (से जिन पूजन करने ) की इच्छा को विफल मत करो अथवा नए नागकेसर के वृक्षों की जो तुम्हें ( मेघ को ) प्राप्त करने की इच्छा है, उसे विफल मत करो या तुम्हारे सदृश अन्य मेधों की जो जिनपूजा की अभिलाषा है, उसे विफल मत करो। अथवा देवेन्द्र के समान जिसका दिव्यरूप प्रकट हुआ है ऐसे तुम भक्ति करते हुए अपनी सामर्थ्य से रत्री मई नाना रत्नों से विशिष्ट अवस्था को या मोर की मनोहर कण्ठ की द्युति को अपने शरीर में धारण करते हुए, बुरे भाव न कर ईशान दिशा के स्वामी रुद्र की रक्त से गीले गजचमं को धारण करने की इच्छा को दूर करो अर्थात् उक्त गजचर्म के समान होकर तुम्हीं उसका स्थान ग्रहण करी ।
नाट्यं तन्वन्सुरुचिरतनुर्नाटय व्योमर, सारापुष्पप्रकररुचिरे सौम्यविद्युन्नर्टी ताम् ।