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________________ पाश्र्वाभ्युक्य जलं शृङ्गारादिवी अभ्यन्तरे यस्य सः । 'शूलारादो जले वीये सुवर्ण विषशुक्लयोः । आस्वादे रमने अहः' इति शब्याणये । भव सम्यक सद्ररामनुभवेत्यर्थः । अत्रार्थान्तरन्यासमाह । स्त्रीणां प्रियेषु वल्लभेषु । विभ्रमो विलासः । 'स्त्रीणां विकासवियोकविभ्रमाललितम्' इत्यमरः । स एवाचमादिमम् । प्रणयवचनं प्रिय वाक्यम् । हि स्फुटम् । स्यादिति निर्देवाः । विभ्रमरेब रतिप्रकाशनं न तु वचनतः । विनमश्चात्र नाभिसन्दर्शनादिरेवेति तात्पर्यम् ॥१०६।।। अन्वय-पथि सन्निपस्थ अक्षरः विना अपि स्फुटं इत्र स्वयि औत्सुक्यं व्यमजयन्त्याः किञ्चिल्लज्जावलित इव सन्दशिलाप्तागमायाः निर्विाध्यायाः सन्निपत्य रसाभ्यन्सरः भव, हि ( यतः ) स्त्रीणां प्रियेषु विभ्रमः आद्य प्रणयवचनम् । अर्थ-उज्जयिनी के मार्ग में उस निविन्ध्यानदी को पाकर अक्षरों के (उच्चारण के ) विना भी व्यक्त के समान आपके विषय में उत्कष्ठा को व्यक्त करती हुई कुछ कुछ लज्जा से अपने शरीर को बक्र बनाती हुई आप्त ( विश्वस्त व्यक्ति) के आगमन को प्रकट करती हुई निविन्ध्या नदी के पास जाकर उसके रस (जल अथवा शृङ्गार) को ग्रहण करने में अन्तरङ्ग बनो, क्योंकि स्त्रियों की प्रणयीजनों में श्रृंगार चेष्टा ही प्रथम प्रणय वाक्य हो जाता है। भावार्थ- कामिनी अपने प्रेमी के प्रति अभिप्राय को बचन के बिना ही व्यक्त कर देती है, निविन्ध्या ने भी नाभि प्रदर्शनादिरूप विलासों से अभिप्राय को व्यक्त कर दिया है। उसने यद्यपि मेघ से वचन द्वारा प्रार्थना नहीं की, फिर भी उसके रस (जल, श्रृंगार ) का अनुभव मेघ को अवश्य करना चाहिए, क्योंकि नाभि आदि दिखलाने से अपने अभिप्राय को वचनादि के उच्चारण बिना ही उसने प्रकट कर दिया है। हंसश्रेणोकलविरुतिभिस्वामिवोपाह्वयन्ती, धृष्टा मार्गे शिथिलबसनेवासाना दृश्यते ते । वेणीभूतप्रतनुसलिला तामतीतस्य सिन्धुः, पाण्युच्छायातटरूहतरुभ्रशिभि|र्णपणः ।।१०७। हंसश्रेणीति । ता निविन्ध्यानदोम् । अतीतस्य अतिक्रान्तस्म । ते तव । मार्गे पथि । तटसहतरुनाशिभिः तटयोरुहन्तीति तटम्हाः 'ज्ञाकृप्रिगुपान्त्यात्कः' इति क प्रत्ययः । तीरखमो अवास्तरदः तेम्यः भ्रंशतीत्येवं शीलानि भ्रशानि तैः पतनशीलः। जोर्गपणेः शुष्कदलः । पाण्डछाया पाण्डुवर्णा विरहावस्थयेति १. सलिलासाबतीतस्पेति पाठः ।
SR No.090345
Book TitleParshvabhyudayam
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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