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________________ प्रथम सर्ग १०५ जिस आपके प्रति ये पर्वत सन्तोष को धारण करते हैं, मित्रभाव को अप्राप्त उस आपका महापुरुषों के समान स्नेहाचरण करने वाला आम्रकूट पर्वत त्यधिक रूप से बन्धु के द्वारा करने योग्य स्वागत सत्कारादि के कार्य को करेगा । जो आम्रकूट पर्वत पुनः पूर्वोक्त प्रकार से उन्नत है, वह मित्र के रूप में आपको पाकर क्या विमुख होगा ? भावार्थ - चूंकि मेघों की उन्नतकाय वाले पर्वतों के साथ मित्रता है, अतः वे पर्वत मेघ जैसे व्यक्तियों का अवश्य ही स्वागत करेंगे। आम्रकूट पर्वत जो शत्रुओं के प्रति भी महापुरुषों के समान व्यवहार करता है, मित्र के रूप में आपको पाकर अवश्य हो स्वागत करेगा | तात्पर्य यह कि आम्रकूट पर्वत यदि आप मित्र न भी होते तो भी आपका स्वागत करता, मित्र होने पर तो करेगा ही । सेव्यः सोऽद्रिः खचरवनिताध्यासितोवग्रशृङ्गस्त्वविधान्ये त्वरयति पुरा रम्यसानुप्रवेशः । सिद्धोपास्यः कुसुमितलतावीरुधां सन्निवेश्यः, छन्मोपान्तः परिणतफलद्योतिभिः काननात्रैः ॥ ६९ ॥ सेव्य इति । खचरवनिताध्यासितप्रभृङ्ग विद्याधरस्त्रीभिरधिष्ठित मुन्नतशिखरं यस्य सः । रम्यसानुप्रदेश: रम्यः सानूनां प्रदेशो यस्य राः । सिद्धोपास्प: सिद्धदेव राराध्यः । कुसुमितलतावोरुघां पुष्पितलतागुल्मानाम् । द्राक्षादयो लताभेदाः । धुस्तकादयो गुल्मभेदा इति यावत् । सन्निवेश्यः आश्रयणीयः । परिणतफलद्योतिभिः परिणतैः परिपषः फलैः द्योतन्त इति द्योतिनस्तैः । आपाढे व वनभूताः फलन्ति पच्यन्ते च मेघवास्थावादः । काममात्रैः वनचूतैः । म्नोपान्तः समावृत पादः । 'सेवपः सेवितुं योग्यः । सोतिः आम्रकूटाचलः । पूरा अग्रतः । निकटागामिके पुरा seaमरः । विध्वान्त्यै विश्रमणा । भवन्तम् । वरयति सम्भ्रमयति ॥ ६९ ॥ अन्वय - खचरवनिताध्यासितोदयशृङ्ग रम्यसानुप्रदेशः सिद्धीपास्यः कुसुमितलता arari मन्निवेश्यः परिणतफलयोतिभिः काननाम्रै छन्नोपन्तः सेव्यः स अद्रिः पुरा वां विधान्ये खरयति । 1 अर्थ – विद्याधरियां जिसके ऊँचे शिखर पर बैठा करती हैं, सुन्दर शिखरों के अग्रभाग से युक्त सिद्धों के द्वारा मेबन करने योग्य फूली हुई लताओं और गुल्मों के आश्रय के योग्य पके हुए फलों के द्वारा द्योतित वन के आमों द्वारा जिसका समीपवर्ती प्रदेश ढका हुआ है ( इस प्रकार ) • सेवन करने योग्य वह पर्वत तुम्हें निकट भविष्य में विश्राम करने के लिए जल्दी कराएगा |
SR No.090345
Book TitleParshvabhyudayam
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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