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________________ १०२ पाश्र्वाभ्युदय वक्ष्यत्युच्चैः पथगतपरिश्रान्तितान्तं नितान्तं, तुङ्गोऽद्रिः स्वैर्बहुविलसितैनिहरैरात्तकान्तिः । प्रत्युद्यातो धुततटबनोपान्तदेशैमद्भिः , स्वामासारप्रशामितवनोपद्रवं साधुः भूर्ना ॥ ६५ ॥ वक्ष्यतीति । उम्म: पथगतिपरिमाप्तितान्तम् उच्चः पथगत्या व्योमगमनेन जाता परिश्रान्तिः परिश्रमः तया तान्तः खिन्नस्तम् । मासारप्रधामितवमोपद्रवम् मासारेण वेगवद्वर्षणेन 'आसारो वेगवर्षम्' इत्यमरः । प्रशमितो वनोपद्रवोवनाग्निर्येन सं कृतोपकारमित्यर्थः । त्वां भवन्तम् । सुङ्गः उन्नतः । अविः भूभृत् । कोप्यद्विरितिवा पाठः । स्वः स्वकीयः । बह विलसितैः बहुधा निमितः निरैः जलप्रवाहैः। 'प्रवाहो निझरो झर' इत्यमरः । वासकान्तिः पततिः । धुततटबनोपान्तवेश: घुत्ताः कम्पिताः सटवनस्य उपान्तदेशा यस्तैः । मद्भिः वायुभिः । प्रायुधात: प्रत्युदगतः सन् मितान्तं गालम् । 'तीवकान्तनितान्तानि गाढवाढवानि च' इत्यमरः । साष सम्यक् । मुना शिरसा । वक्ष्यति उचरिष्यति । 'यहि प्रापणे' लट् । दत्तपासः कृताऽभ्यागतप्रतिपत्तिः सन् मानयिष्यतीति तात्पर्यम् ॥ ६५ ।। अन्धय-बविलसितः स्वः निर: आत्तकान्तिः घुलतटबनोपान्तदेशः मद्धिः प्रत्युद्यातः नितान्तं तुङ्गः अद्रिः आसारप्रशमितघनोपद्रव पथगतिपरिश्रान्तितान्तं स्वा मुर्मा उत्रः साघु वक्ष्यति । ___ अर्थ अनेक प्रकार की शोभाओं से युक्त अपने जल प्रवाहों से प्राप्त कान्ति वाला, किनारे के वन के समीपवर्ती प्रदेशों को कंपाने वाली वायुओं के द्वारा आदर सत्कार के लिए उठा हुआ, अत्यधिक ऊँचा ( कोई ) पर्वत दावाग्नि से उत्पन्न दुःख को ( अपनी) धाराप्रवाह जल वर्षा से दर करने वाले तथा मार्ग में गमन करने से उत्पन्न परिश्रम के कारण थके हुए तुम्हें शिर से ऊंचाई पर भली प्रकार धारण कर लेगा। भावार्थ-सज्जन लोग किए हुए उपकार को नहीं भूलते हैं। किसी पर्वत पर दावानल जल रही थी । उमे मेघ अपनी धाराप्रवाह जल वर्षा से बुझा देगा। इस कारण कृतज्ञ पर्वत अवश्य ही उस मेघ की भलीभांति अगवानी करेगा और उपकारी को जिस प्रकार लोग अपने सिर पर उठा लेते हैं, उसी प्रकार जो पर्वत भी मंघ को (जो मार्ग में चलने को थकान के कारण दुःस्त्री है ) भलीभाँति अपने ऊपर धारण कर लेगा। त्वय्यासन्ने बिरलविरलान्प्रावृषेण्योदबिन्दून्, वस्त्रक्नोपं विसृजति तथाऽप्यश्मवेश्मोदरीषु।
SR No.090345
Book TitleParshvabhyudayam
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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