________________
६२
पंडित टोडरमल व्यक्तित्व और कर्तृत्व
राज्य की विद्वत्परिषद् को अखरने लगा और कई बार पराजित होने से वे उन पर द्वेषभाव रखने लगे ।
:
-
—
यह बात सम्भव नहीं है कि जिस व्यक्ति को उस युग में जब कि कोई व्यक्ति घर से बाहर जाना पसन्द नहीं करता था और यातायात के समुचित साधन उपलब्ध नहीं थे अपनी अल्पवय में आजीविका । के लिये बाहर जाना पड़ा हो, वह प्रार्थिक दृष्टि से सम्पन्न रहा होगा और वह भी इतना कि उसकी शिक्षा के लिए उसके माता-पिता गर से विधान् बुलाने की स्थिति में हो ।
दूसरे यह भी संभव नहीं कि दीवान अमरचन्दजी ने उनके पढ़ाने की व्यवस्था की हो या उन्हें राज्य में कोई अच्छा पद दिलाया हो क्योंकि पं० टोडरमल के दिवंगत होने तक अमरचन्दजी दीवान पद पर प्रतिष्ठित नहीं हुए थे। पंडितजी के राजकर्मचारी पद से राजा और प्रजा के हित में अनेक कार्य करने की बात निरी कल्पना ही लगती है। न तो लेखक ने इसके संबंध में कोई प्रमारग ही प्रस्तुत किया है और न इस संबंध में अन्य कोई जानकारी उपलब्ध है । राजा की विद्वत्परिषद् में जाने एवं वहाँ वाद-विवाद करने के कोई उल्लेख नहीं मिलते और न यह सब उनकी प्रकृति के अनुकुल ही था ।
अध्ययन और जीवन
!
पंडितजी का अध्ययन विस्तृत और समय में न्याय व्याकरण, छन्द, अलंकार, प्राकृत संस्कृत भाषा के विद्वान हो गए थे अध्यात्म का गहन अभ्यास उन्होंने कर लिया था । ब० रायमल ने उनके विषय में लिखा है :
--
गंभीर था । वे थोड़े ही गणित आदि विषयों एवं तथा जैन - सिद्धान्त और
"ढूंढाड देश विषे सवाई जैपुर नगर ता विषै तेरापंथ्या का देहरा दिवे टोडरमल्लजी बड़े पुण्यवान श्रेष्टी असम्यक दृष्टी न्याय
" मोक्षमार्ग प्रकाशक : अनन्तकीति ग्रन्थमाला बम्बई, भूमिका, २३
1
1