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________________ जीवनवृत्त व्याकरण छंद अलंकार गरिणत आदि शास्त्र के पारगामी विशेष तत्वज्ञानी अात्मअनुभवी बड़े अध्यात्मी'.....।' वे स्वयं लिखते हैं : "हमारे पूर्व संस्कार ते वा भला होनहार ते जैन शास्त्रनिविर्ष अभ्यास करने का उद्यम होत भया। तात व्याकरण, न्याय, गणित, आदि उपयोगी ग्रन्थनि का किचित् अभ्यास करि टीकासहित समयमार, पंचास्तिकाय, प्रवचनसार, नियमसार, गोमट्टसार, लब्धिमार, त्रिलोकमार, तत्त्वार्थसूत्र इत्यादि शास्त्र पर क्षपणासार, पुरुषार्थसिद्ध्युपाय. अष्टपाहुइ, प्रात्मानुशासन प्रादि शास्त्र पर श्रावक मुनि का प्राचार के प्ररूपक अनेक शास्त्र अर सुस्ठकथा सहित पुराणादि शास्त्र इत्यादि अनेक शास्त्र हैं तिनि विर्षे हमारै बुद्धि अनुमारि अभ्यास बने है !" जैन दर्शन के साथ-साथ आपको समस्त भारतीय दर्शनों का अध्ययन भी था। मोक्षमार्ग प्रकाशक के पाँचवे अधिकार में प्रयुक्त अनेकों भारतीय दर्शन-ग्रन्थों के उत्तरगण इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। प्राकृत, संस्कृत और हिन्दी भाषा के तो वे विशेष विद्वान् थे ही, साथ ही कन्नड़ भाषा और लिपि का भी उन्हें अभ्यास था। प्राकृत और संस्कृत के गंभीर ग्रन्थों की टीकाएँ तो उन्होंने जनभाषा में लिखी ही हैं, कन्नड़ ग्रन्थों पर भी उन्होंने जयपुर को जैन सभायों में प्रवचन दिए थे। गार्हस्थ जीवन व्यतीत करते हुए भी उनकी वृत्ति सात्विक, निरीह एवं साधुता की प्रतीक थी । उनका जीवन प्राध्यात्मिक जीवन था । उनका अध्ययन, मनन, पाण्डित्य-प्रदर्शन के लिए नहीं, ' देखिये प्रस्तुत ग्रंथ, ५१-५२ २ मो० मा०प्र०, १६-१७ ३ इ. वि. पत्रिका, परिशिष्ट ? ४ "भापाटी का ता उपरि, कीनी टोडरमल्ल । मुनिवत वृत्ति ताकी रहे, वाके मांहि प्रचल्ल ।।" -पु. भा. टी० प्र०, १२६
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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